खजुराहो की मूर्तिकला में प्रयुक्त अंलकरण अभिप्राय

The Significance of Sculpture and Symbolism in the Murals of Khajuraho

by Anuja Tripathi*, Dr. Nivedita Chaubey,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 19, Issue No. 4, Jul 2022, Pages 668 - 671 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।वास्तुशिल्प का उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलता है, क्यांकि यह शिल्प भारत के प्राचीन शिल्पों में से एक है। चन्देल काल में बुन्देलखण्ड में मूर्तिकला, स्थापत्य कला तथा अन्य कलाओं का विशेष विकास हुआ।चन्देलकाल में लगभग 950 ई0 से 1150 ई0 के मध्य खजुराहो में 200 वर्षों की दीर्घ समयावधि में 85 मन्दिरों का निर्माण किया गया। मिथुन-मैथुन प्राकृतिक, अप्राकृतिक ऐन्द्रिक शिल्प के कारण भी खजुराहो विश्व प्रसिद्ध है। परन्तु वस्तुतः यहाँ के शिल्प में उत्कीर्ण जनसामान्य संबंधी दृश्य यथा- शिक्षा, नृत्य, संगीत, भवन-निर्माण, युद्ध, कला, पारिवारिक प्रसंग, यात्रा, आखेट आदि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जिनमें जीवन का उल्लास देखा जा सकता है। खजुराहो में स्थापत्य अभिप्राय (चैत्य गवाक्ष, मन्दिर वास्तु एवं सिरदल अभिप्राय) एवं शौर्य के प्रतीक के रूप में व्याल का अंकन आलंकारिक स्वरूप में अपना स्वतंत्र स्थान रखते हैं।

KEYWORD

खजुराहो, मूर्तिकला, अंलकरण, बुन्देलखण्ड, स्थापत्य कला, चन्देल काल, मंदिरों, मिथुन-मैथुन प्राकृतिक, जनसामान्य संबंधी दृश्य, स्थापत्य अभिप्राय, व्याल