भारतीय समाज में दलितों का उत्थान: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण

अछूतोद्वार के लिए वस्त्रित एक समाजशास्रीय अध्ययन

by डॉ. विपिन कुमार*, डॉ. सत्येन्द्र सिंह,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 20, Issue No. 4, Oct 2023, Pages 424 - 426 (3)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि मानव समाज आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित हो गया है। यह तो नहीं मालूम कि मानव समाज का विघटन कब, कैसे और क्यों हुआ, लेकिन यह निश्चित है कि इस प्रकार का विभाजन उस मानव प्रजाति के नाम पर कलंक है जो पृथ्वी पर जीवधारियों में सबसे अधिक विकसित और बुद्धिमान है, साथ ही यह विभाजन अवांछनीय, दुर्भाग्यपूर्ण और गलत भी है। यह वास्तव में दुःखद है कि एक ही प्रजाति का एक सदस्य दूसरे सदस्य को केवल इसलिए छूने को तैयार नहीं है क्योंकि उसका जन्म दूसरे कुल में हुआ है। कई समाज-सुधारकों ने अछूतोद्वार के लिये प्रयास किये हैं और उनमें कुछ सफल भी हुए हैं, लेकिन इस सफलता को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। सरकार दिन-प्रतिदिन इसके लिये नये-नये नियम बना रही है लेकिन अभी तक स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं आ पाया है। दलित वर्ग की वास्तविक और स्थायी जागरूकता के लिए उनकी संस्कृति, सामाजिक विचारधारा और स्वयं के प्रति विकासशीलता की भावना का उदय होना परमावश्यक है।

KEYWORD

भारतीय समाज, दलितों, उत्थान, समाजशास्त्रीय विश्लेषण, विभाजन