लिंग-भेदभाव एवं ग्रामीण बालिकाओं का पालन पोषण

समाज में लिंग-भेदभाव के प्रभाव पर एक अध्ययन

by Nanhi Kumari*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 3, May 2018, Pages 542 - 547 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

यदि हम विधिवत रूप से नारी सशक्तिकरण का अध्ययन करना चाहते हैं तो हमें अपना अध्ययन जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को अपने आधीन करने वाली जटिल संरचना से करना होगा और यह जटिल संरचना ‘पुरूषवाद’ या ‘पितृसत्ता’ है। यह परम्परागत संरचना विश्व के लगभग सभी देषों में किसी न किसी रूप में चली आ रही है। पुरूषवाद या पितृ सत्ता जिसके जरिये अब संस्थाओं के एक खास समूहों को पहचाना जाता है जिन्हे सामाजिक संरचना और क्रियाओं की एक ऐसी व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें पुरूषों का स्त्रियों पर वर्चस्व रहता है[1] इसी को लिंगभेद कहते है। यह एक विश्वव्यापी ज्वलंत समस्या है जो समाज का एक कुरूप चेहरा सामने लाती है। लिंगभेद महिलाओं के सामाजिक न्याय एवं समानता के मार्ग में बाधक है।[2] पुरूष सामान्यतः स्त्रियों का शोषण और उत्पीड़न करते हैं। पितृ सत्ता की मान्यता है कि, पुरूष का अधिकार और कार्य है ‘‘आदेश देना’’ तथा स्त्री का कर्तव्य है ‘उस आदेश का पालन करना। पितृ सत्ता की एक मान्यता है, कि स्त्री का कार्यक्षेत्र घर परिवार, बच्चे पैदा करना उनका लालन-पालन करना और पारिवारिक सदस्यों की देखभाल करना है बाकी सभी क्षेत्र पुरूषों के लिए है क्योंकि इन क्षेत्रों में कार्य करने की योग्यता एवं क्षमता केवल पुरूषों में है। पुरूष प्रधान समाज में पुरूषों का सभी महत्वपूर्ण सत्ता प्रतिष्ठानों पर नियंत्रण रहता है और महिलाऐं इनसे वंचित रहती है। पुरूष प्रधान सोच इस बात पर आधारित है कि पुरूष स्त्रियों से अधिक श्रेष्ठ है।[3]

KEYWORD

लिंग-भेदभाव, ग्रामीण बालिकाओं, पूरूषवाद, पितृसत्ता, लिंगभेद, समाजिक न्याय, समानता, शोषण, कर्तव्य, पारिवार