संत जगजीवनदास की दार्शनिक प्रासंगिकता

अपनी बुद्धि के कारण ही मानव विश्व की अन्य वस्तुओं को देखकर उनके स्वरूप को जानने की चेष्टा

by Neelam Kumari*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 9, Oct 2018, Pages 521 - 525 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

अनेक पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं तथा मनुष्यों से संसार का निर्माण हुआ है। सभी मनुष्य संसार में अपने-अपने ढ़ग से जीवन-निर्वाह करते है। लेकिन सभी व्यक्ति में अपने-अपने स्तर पर भिन्नता है। सभी प्राणी अपने अस्तित्व को बनायें रखने के लिए संघर्ष करते रहते है। मनुष्य पशु की अपेक्षा श्रेष्ठ है क्योंकि उसमें सोच-विचार तथा चिंतन का विशेष गुण है और इसी गुण के कारण व अन्य जीवो से भिन्न है। अपनी बुद्धि के कारण ही मानव विश्व की अन्य वस्तुओं को देखकर उनके स्वरूप को जानने की चेष्टा करता है। “मनुष्य का बुद्धि की सहायता से युक्तिपूर्वक तत्वज्ञान प्राप्त करने को ‘दर्शन’ कहते है।

KEYWORD

संत जगजीवनदास, दार्शनिक प्रासंगिकता, पशु-पक्षी, मनुष्य, संघर्ष, बुद्धि, तत्वज्ञान, दर्शन