समायोजन एवं बुद्धि के विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर व्यक्तित्व के पहलूओं का अध्ययन

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Authors

  • ममता शर्मा
  • डॉ. सविता गुप्ता

Keywords:

विकास, व्यक्तित्व, समायोजन, परिवर्तन, व्यवहार

Abstract

विकास एक प्रक्रम हैए जिसे प्रेक्षण और उत्पाद जाना जा सकता है। विकासात्मक परिवर्तनए व्यक्तित्व की संरचना एवं उसके प्रकार्य में होते है। दैहिक संरचना में परिवर्तन जीवन पर्यन्त होते रहते है। ये परिवर्तन शरीर की कोशिकाओं एवं उतकों तथा अन्य रासायनिक तत्वों में होते रहते है। इसके साथ ही व्यक्ति के सवेंगोंए व्यवहारों एवं अन्य व्यक्तित्यशाली गुणों में परिवर्तन होते रहते है जिन्हें प्रेक्षण द्वारा प्रत्यक्ष या व्यक्ति द्वारा किये गये व्यवहार के परिणाम के आधार पर परोकरू जाना जा सकता है। चूँकि विकास प्रगतिशील एवं निषिचत्त क्रम में होनेवाला परिवर्तन है। इस परिवर्तन से व्यक्ति में समायोजन की योग्यता विकसित होती है तथा यह एक पूर्ण मानव बनता है। विकास में अनुक्रम होता है अर्थात् एक अवस्था का विकास इसके पूर्व की अवस्था के विकास के प्रारूप का निर्धारण करता है तथा आगे की अवस्था के विकास के प्रारूप का निर्धारण करता है। अत स्पष्ट है कि विकास का अनुक्रम गर्भादान के समय से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक सिलसिलेवार होता रहता है। इसी विकास को गत्यात्पक कहा जाता है। किसी व्यक्ति का चाहे कितने ही मानसिक या शारीरिक गुणों का योग होए कितना ही चिन्तनशील या ज्ञानी होए परन्तु उसके व्यवहार में गतिशीलता न होने पर उसका व्यवहार और समायोजन अधूरा रह जाता है।

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Published

2022-12-01

How to Cite

[1]
“समायोजन एवं बुद्धि के विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर व्यक्तित्व के पहलूओं का अध्ययन: -”, JASRAE, vol. 19, no. 6, pp. 237–243, Dec. 2022, Accessed: Nov. 05, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/14171

How to Cite

[1]
“समायोजन एवं बुद्धि के विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर व्यक्तित्व के पहलूओं का अध्ययन: -”, JASRAE, vol. 19, no. 6, pp. 237–243, Dec. 2022, Accessed: Nov. 05, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/14171