मानवीय समता के विधायक: संत कबीर
आध्यात्मिक महापुरूषों के विचार और मानव समाज के लिए संघर्ष
Keywords:
मानवीय समता, संघर्ष, संत महात्मा, विचार, संतAbstract
संसार में मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना हेतु जिन-जिन महापुरूषों ने अपने जीवन काल में मानव हित के लिए संघर्ष करते रहे है, उनकी प्रासंगिकता प्रत्येक युग में ज्यों की त्यों बनी रहती हे। और तब तक बनी रहेगी जब तक मनुष्य का अस्तित्व कायम रहेगा। प्रभुईसा मसीह, महात्मा बुद्ध, गुरू नानक, रैदास आदि ऐसे संत महात्मा हुए है, जिनके विचार आज भी उतना ही महत्व रखते है, जितने कि उस युग में रखते थे। अब हमारे समक्ष प्रश्न यह निकलकर आता है कि आखिर संत होता कैसा है, इनको संतो की संज्ञा ही क्यों दी गई है? “सन्त शब्द की उत्पति संस्कृत की ‘अस्’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘होना’ और इस धातु के कृदन्त रूप संत के पुल्लिंग एकवचन ’सत’ के बहुवचन ‘संत’ से हुई है। जिसका अर्थ ‘शत’ प्रत्यय के योग से होने वाला या रहने वाला होता है। अर्थात जो अविचिछन्न या एक रूप में विद्यमान रहता है, वही संत है।’’1Published
2019-02-01
How to Cite
[1]
“मानवीय समता के विधायक: संत कबीर: आध्यात्मिक महापुरूषों के विचार और मानव समाज के लिए संघर्ष”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 436–439, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10148
Issue
Section
Articles
How to Cite
[1]
“मानवीय समता के विधायक: संत कबीर: आध्यात्मिक महापुरूषों के विचार और मानव समाज के लिए संघर्ष”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 436–439, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10148






