विद्यापति का सौन्दर्य-दर्शन
Exploring the Beauty of Vidyapati
Keywords:
सौन्दर्य-दर्शन, सौन्दर्य, भावन-उद्भावन, अनुसन्धान, जीवन, काव्य, भावसंकुल, अनुभूतियाँ, शरीर, भावAbstract
मानव अनादिकाल से सौन्दर्य का भावन-उद्भावन-अनुसन्धान करता आ रहा है। सौन्र्य-सम्बन्धी यह भावन-संधान प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग, रूचि, संस्कार शक्ति एवं सीमा के अनुसार करता है। चाहे कोई सामान्य व्यक्ति हो, चाहे विशिष्ट-कवि हो अथवा कलाकार हो, सभी का पुरूषार्थ सौन्दर्य-साधन होता है। उसके जीवन या काव्य का प्रारम्भ और प्र्यवसान सौन्दर्य में ही अवस्थित है। हाँ, यह अवश्य है कि प्रत्येक कवि की सोन्दर्य-चेतना की विवृति नानाविध भावसंकुल, सांसारिक अनुभूतियों के माध्यम से होती है। ये अनुभूतियाँ ऐन्द्रिक हों या अतीन्द्रिक, शरीरी हों या अशरीरी (दिव्य) काव्य की प्रतिपाद्य होती है क्योंकि भारतीय संस्कृति में भाव की अभयर्थना के साथ शरीर की अवहेलना का विधान नहीं है। भाव एवं शरीर दोनों को समसमान महत्तव मिला है। भारतीय मानीषी यह समझते थे कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’-शरीर ही धर्मसाधना का साधन है, अतएव यह माननीय है।Published
2019-02-01
How to Cite
[1]
“विद्यापति का सौन्दर्य-दर्शन: Exploring the Beauty of Vidyapati”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 549–555, Feb. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10171
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Articles
How to Cite
[1]
“विद्यापति का सौन्दर्य-दर्शन: Exploring the Beauty of Vidyapati”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 549–555, Feb. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10171