महाकवि सूरदास का सौन्दर्य-बोध
सूरदास के अंदर छिपी सौंदर्य की पहचान
Keywords:
सौन्दर्य-बोध, सृष्टि, विश्व, चेतना, महाकवि सूरदासAbstract
सौन्दर्य सृष्टि का मूल तत्त्व है। सृष्टि के बाहर और भीतर सौन्दर्य ही आनंद का सर्वातिशायी महाभाव है। वस्तुतः यह सम्पूर्ण विश्व उस विराट चेतना की सौन्दर्यमयी अभिव्यक्ति है। बहती हुई नदियों खिले हुए पुष्पों लहराते हुए वनों हिलोरे लेता सागर बर्फ से ढकी ऊँची-ऊँची पहाड़ की चोटियाँ तारिकाओं से आच्छादित आकाश-ये सभी सौन्दर्य की विराट चेतना को उजागर करते हैं। सृष्टि की मूल चेतना आनन्द है और आनंद की प्राप्ति में सौन्दर्य-तत्त्व सहायक सिद्ध होता है। संसार की लगभग सभी वस्तुएँ सौन्दर्यमूलक हैं। मानव की चेतना का विकास वस्तुतः सौन्दर्य चेतना का ही विकास है। महाकवि प्रसाद ने सौन्दर्य को ‘चेतना का उज्ज्वल वरदान कहा है।Published
2019-02-01
How to Cite
[1]
“महाकवि सूरदास का सौन्दर्य-बोध: सूरदास के अंदर छिपी सौंदर्य की पहचान”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 697–203, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10202
Issue
Section
Articles
How to Cite
[1]
“महाकवि सूरदास का सौन्दर्य-बोध: सूरदास के अंदर छिपी सौंदर्य की पहचान”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 697–203, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10202






