हिन्दी भाषा: कल आज और कल
भाषा, देश और स्वाधीनता: भारत में हिन्दी की भूमिका
Keywords:
हिन्दी भाषा, राष्ट्रभाषा, भाषा प्रचारक, जनतंत्र, भाषाओं की स्पर्द्धाAbstract
राष्ट्रभाषा के मामले को, जो इस देश में बेहद उलझ गया है और उस पर लिखना या बात करना औसत दर्जे के प्रचारकों का काम समझा जाने लगा है, अगर मैं भी टाल देता तो शायद मेरे हित में ही होता। आज अपनी भाषा में लिखने पर भी लोग भाषा पर बात करना अवांछित समझते हैं देश में रहकर देश पर बात करने में शरमाने लगे हैं – उन्होंने कोई ऊँची बात ही सोची होगी, जो मैं नहीं सोच पाया-शायद इसीलिए यह पुस्तक आ सकी है।भाषा का प्रश्न मानवीय है, खासकर भारत में, जहाँ साम्राज्यवादी भाषा जनता को जनतंत्र से अलग कर रही है। हिन्दी और अंग्रेजी की स्पर्द्धा देशी भाषाओं और राष्ट्रभाषा के द्वंद्व में बदल गई है, मनों को जोड़ने वाला सूत्र तलवार करार दे दिया गया है, पराधीनता की भाषा स्वाधीनता का गर्व हो गई है। निश्चय ही इसके पीछे दास मन की सक्रियता है। कैसा अजब लगता है, जब कोई इसलिए आंदोलन करे कि हमें दासता दो, बेड़ियाँ पहनाओPublished
2019-02-01
How to Cite
[1]
“हिन्दी भाषा: कल आज और कल: भाषा, देश और स्वाधीनता: भारत में हिन्दी की भूमिका”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 712–714, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10205
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Articles
How to Cite
[1]
“हिन्दी भाषा: कल आज और कल: भाषा, देश और स्वाधीनता: भारत में हिन्दी की भूमिका”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 712–714, Feb. 2019, Accessed: Dec. 25, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10205






