गुप्तकालीन कृषि, कृषक एवं भूमि व्यवस्था

The Hidden World of Ancient Agriculture

Authors

  • Sonu Kumar

Keywords:

गुप्तकालीन, कृषि, कृषक, भूमि व्यवस्था, जोतना, बोना, बैल, हरी फसल, खेत, भु-मि

Abstract

कृषि शब्द ‘कृष्’ धातु से बना है जिसका अर्थ कूँड़ बनाना या जोतना होता था। इसमें जोतना, खोदना, बोना, निराना, काटना, गाहना, सलना आदि सभी कार्य आते थे। जोतनेवाले को खिलाना-पिलाना, बीज तथा बैलों की व्यवस्था भी कृषि के अर्थ के भीतर था हाल और बैल कृषि के मुख्य साधन से। कृषक स्वयं कषि करता या कृषक-मजदूर से करवाता था। हल चलाने से भूमि में जो कूँड़ बनता उसे सीता कहते थे। भूमि कई प्रकार की होती थी। केदार उस खेत को कहते जहाँ हरी फसल बोई जाती और जिसमें पानी की सिंचाई होती थी। हरी फसल से लहलहाते खेतों का समूह कैदारक, खलिहानी के समूह खल्या तथा खलिनी, खेती योग्य भूमि कर्ष और जितनी भूमि हल की जोत में आ जाती उसे हल्य या सीत्य कहते थे। धान के खेत को वै्रहेय, शालि के खेत को शालेय, जौ का खेत यव्य, चावल का खेत यवक्य, साठी का खेत शष्टिक्य और भाँग का खेत भंग्य-भांगीन कहा जाता था।

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Published

2019-02-01

How to Cite

[1]
“गुप्तकालीन कृषि, कृषक एवं भूमि व्यवस्था: The Hidden World of Ancient Agriculture”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 792–796, Feb. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10221

How to Cite

[1]
“गुप्तकालीन कृषि, कृषक एवं भूमि व्यवस्था: The Hidden World of Ancient Agriculture”, JASRAE, vol. 16, no. 2, pp. 792–796, Feb. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10221