अष्टांग योग भारतीय ग्रंथों मे योग का महत्व

The Essence of Yoga in Indian Texts: An Exploration of Ashtanga Yoga

Authors

  • Sandeep Kumar
  • Dr. Kiran Verma

Keywords:

अष्टांग योग, भारतीय ग्रंथों, चित्तवृत्ति, उपाय, अंग

Abstract

अष्टांग योग महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्तवृत्ति के निरोध का नाम योग है (योगश्चितवृत्तिनिरोधः)। इसकी स्थिति और सिद्धि के निमित्त कतिपय उपाय आवश्यक होते हैं जिन्हें ’अंग’ कहते हैं और जो संख्या में आठ माने जाते हैं। अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) ’बहिरंग’ और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) ’अंतरंग’ नाम से प्रसिद्ध हैं। बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है। ’यम’ और ’नियम’ वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं। यम का अर्थ है संयम जो पांच प्रकार का माना जाता है (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना अर्थात् दूसरे के द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना),। इसी भांति नियम के भी पांच प्रकार होते हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)

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Published

2019-03-01

How to Cite

[1]
“अष्टांग योग भारतीय ग्रंथों मे योग का महत्व: The Essence of Yoga in Indian Texts: An Exploration of Ashtanga Yoga”, JASRAE, vol. 16, no. 4, pp. 1056–1060, Mar. 2019, Accessed: Aug. 29, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10594

How to Cite

[1]
“अष्टांग योग भारतीय ग्रंथों मे योग का महत्व: The Essence of Yoga in Indian Texts: An Exploration of Ashtanga Yoga”, JASRAE, vol. 16, no. 4, pp. 1056–1060, Mar. 2019, Accessed: Aug. 29, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10594