हिन्दी गजल का स्वरूप-विश्लेषण
भौद्धिकता के नीरस बियाबान में खोई हुई हिन्दी गजल की पुनः प्रकाशिता
Keywords:
हिन्दी गजल, भौद्धिकता, कविता, संगीतपूर्ण शैली, भाषाएँAbstract
हिन्दी गजल के व्यापक प्रसार के साथ जो सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हमें दिखलाई पड़ती है वह बौद्धिकता के नीरस बियाबान में खोई हुई कविता कामिनी नये सजधज और नये सौन्दर्य के साथ प्रेमी मानव-समाज में लौटने लगी है। हिन्दी गजल के माध्यम से हिन्दी कविता की भिन्न-भिन्न शैली वाली भीड़भाड़ में खो गयी गीत एवं संगीतपूर्ण शैली वाली कविता पुनः वापस आ रहीं है। निस्संदेह रूप से लौटती हुई यह रूपसी अपनी गेयता, चुभन और मोहक आवरण के कारण सहृदय को अपनी ओर आकृष्ट कर रही है और काव्यास्वाद वाले रसों का परिपाक कराती हुई ये बाद छन्द एवं गीत युग में हिन्दी प्रेमियों को ले जाकर भावविभोर कर रही है। सम्प्रति इसका प्रचार एवं प्रसार समकालीन हिन्दी काव्य-धारा की सभी दिशाओं में हो रहा है। इसके स्वरूप और कथ्य में नवीनता, प्रखरता एवं विविधता का समावेश हुआ है। अब तक इसने किसी वर्ग सीमा, अथवा भाषा की सीमा को पार करके व्यापक क्षेत्र तक अपना विकास किया है। सभी भाषाओं एवं सभी वर्गों के लोगों ने इस विधा के प्रति रुचि दिखाई है। आम जीवन से इसको जुड़ाव इस विधा की विशिष्ट उपलब्धि है। मानव संवेदनाओं एवं चेतना को जागृति करने में हिन्दी गजल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मानवतावादी चिन्तन को इस विधा में विशिष्ट स्थान मिला है।Published
2019-04-01
How to Cite
[1]
“हिन्दी गजल का स्वरूप-विश्लेषण: भौद्धिकता के नीरस बियाबान में खोई हुई हिन्दी गजल की पुनः प्रकाशिता”, JASRAE, vol. 16, no. 5, pp. 532–539, Apr. 2019, Accessed: Jul. 26, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10955
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Articles
How to Cite
[1]
“हिन्दी गजल का स्वरूप-विश्लेषण: भौद्धिकता के नीरस बियाबान में खोई हुई हिन्दी गजल की पुनः प्रकाशिता”, JASRAE, vol. 16, no. 5, pp. 532–539, Apr. 2019, Accessed: Jul. 26, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/10955