तुलसीदास के काव्यों में लोकजीवन की अभिव्यक्ति

The Expression of Folk Life in the Poetry of Tulsidas

Authors

  • Dr. Chitra Yadav

Keywords:

तुलसीदास, काव्यों, लोकजीवन, अभिव्यक्ति, लोक-साहित्य, लोकानुभव, लोकाचार, भक्तिकाल, रचनाएं, समाज

Abstract

लोकजीवन की सार्थकता समाज के स्वस्थ विकास एवं मनोरंजन में है। परम्परा में निरंतर गतिमान लोकजीवन के तत्त्वों का विभाजन करना एक चुनौती पूर्ण कार्य है क्योंकि लोक जीवन के अन्तर्गत इतने अधिक तत्त्व हैं कि इन्हें कुछ ही बिन्दुओं में समेटना सहज नहीं है। फिर भी इसके तीन मुख्य तत्त्व बना सकते हैं - लोक-साहित्य, लोकानुभव (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिवेश), लोकाचार (नारी संस्कृति, रीति-रिवाज, विधि-विधान, लोक विश्वास। भक्तिकाल के कवियों की रचनाएं सहज, सरल तथा लोक-वाणी में है। गृहस्थ जीवन एवं उद्योग-धंधों से जुड़े होने पर भी इन भक्त कवियों की रचनाएं समाज में क्रांति लाने एवं विश्रृंखलित समाज को मार्गदर्शन देने में सक्षम थीं। तुलसीदास ने लोक मानस को व्यक्त करते हुए समाज में बिखरे लोक जीवन के तत्त्वों में अपने काव्य को संजोया है। लोक भूमि की गंध लिए तुलसीदास रचित काव्य जीवन से साक्षात्कार कराते हैं। इसी कारण तुलसी-साहित्य लोक साहित्य के निकष पर खरा उतरता है।

Downloads

Published

2019-06-01

How to Cite

[1]
“तुलसीदास के काव्यों में लोकजीवन की अभिव्यक्ति: The Expression of Folk Life in the Poetry of Tulsidas”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1174–1179, Jun. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12371

How to Cite

[1]
“तुलसीदास के काव्यों में लोकजीवन की अभिव्यक्ति: The Expression of Folk Life in the Poetry of Tulsidas”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1174–1179, Jun. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12371