राजेंद्र यादव के उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति

उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति: राजेंद्र यादव का विमर्श

Authors

  • Anjana Singh

Keywords:

राजेंद्र यादव, उपन्यास, स्त्री, सामाजिक स्थिति, दलित विमर्श

Abstract

राजेन्द्र यादव ने स्त्री एवं दलित विमर्श को अपने उपन्यासों का केंद्रीय विषय बनाया है प् वे इसी विषय के कारण हमेशा विवाद के घेरे में रहे हैं। इसीलिए मैंने राजेन्द्र यादव के उपन्यासों में नारी-चरित्र विषय अनुसंधान हेतु चयन किया है। इसका मूल कारण है विभिन्न वर्गों की नारियों की वास्तविक स्थिति की ओर समाज का ध्यान आकर्षित करना। नारियों की समस्याएँ, एवं उनकी घुटन तथा छटपटाहट का चित्रण यादव के उपन्यासों में प्रमुखता से दृष्टिगत होता है। नारियों की स्थिति में आता सुधार तथा उनके अंतर मन को अभिव्यक्ति देने का कार्य राजेन्द्र यादव ने अपने उपन्यासों के माध्यम से सफल रुप में किया है।

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Published

2019-06-01

How to Cite

[1]
“राजेंद्र यादव के उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति: उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति: राजेंद्र यादव का विमर्श”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1200–1204, Jun. 2019, Accessed: Sep. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12375

How to Cite

[1]
“राजेंद्र यादव के उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति: उपन्यासों में स्त्री की सामाजिक स्थिति: राजेंद्र यादव का विमर्श”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1200–1204, Jun. 2019, Accessed: Sep. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12375