राजस्थान में लोकगायन का उद्भव एवं विकास

आपूर्ति काल से संवर्धित: राजस्थानी लोकगायन का उद्भव और विकास

Authors

  • Bhavna Vijay Mankar
  • Dr. Pooja Rathore

Keywords:

राजस्थान, लोकगायन, उद्भव, विकास, आदिमानव, सूर्य, चन्द्रमा, वनस्पतियों, पशु, पक्षी

Abstract

आदिमानव ने जब सूर्य की ऊषा काल की स्वर्णिम रश्मियो राशि चन्द्रमा की रजत किरण, वनस्पतियों का हास पशु पक्षी का विलास मेधान आकाशसिंग झिग बरसात, बादलो का गरमौर घोष वाघु जल-अग्नि का प्रकोप आदिप्राकृतिक उपादनों के सैदयों को देखा होगा तो उसका अकारण पुष दुख से भर गया होगा तथा उसकी भावाभिव्यक्षिा वह अपने अन्तःकरण पर पड़ने वाले प्रभावों के अनुरूप गुनगुनाया अथवा रोना-चिल्लाना मजाया होगा और इसी भावोच्छवासने विकृत यो गीत को जन्म दिया होगा तथा इसी के साथ भाषा भी अस्तित्व में आई होगी। इस प्रकार आदिमानव के जन्म के साथ ही गीत का जन्म भी माना जाना चाहिए।

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Published

2019-06-01

How to Cite

[1]
“राजस्थान में लोकगायन का उद्भव एवं विकास: आपूर्ति काल से संवर्धित: राजस्थानी लोकगायन का उद्भव और विकास”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1767–1772, Jun. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12468

How to Cite

[1]
“राजस्थान में लोकगायन का उद्भव एवं विकास: आपूर्ति काल से संवर्धित: राजस्थानी लोकगायन का उद्भव और विकास”, JASRAE, vol. 16, no. 9, pp. 1767–1772, Jun. 2019, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12468