आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की हिन्दी आलोचना

A Critical Analysis of Acharya Ramchandra Shukla's Contribution to Hindi Literary Criticism

Authors

  • Dr. Asha Tiwari Ojha

Keywords:

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हिन्दी आलोचना, मान, सिद्धांत, हिन्दी साहित्य

Abstract

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल अपने आलोचनात्मक विवेक के माध्यम से आलोचना के जिस ‘मान’ और ‘सिद्धांत’ को निरूपित किया, उसने हिन्दी आलोचना को काफी समृद्ध किया। बाद में चलकर आलोचना के इस ‘मान’ और ‘सिद्धांत’ को लेकर काफी बहस हुई। हिन्दी की माक्र्सवादी आलोचना के भीतर यह बहस केन्द्र में रहा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’, जायसी, सूर, तुलसी संबंधी व्यावहारिक आलोचना, लोकमंगल और ‘रसदशा’ संबंधी स्थापना उनकी आलोचना का केन्द्रीय हिस्सा रहा है। और इनसे संबंधित आलोचना ही बहस या विवाद के मुख्य हिस्से रहे हैं। आचार्य शुक्ल के ऊपर जो मुख्य आरोप लगे उसमें उन्हें वर्णाश्रम और ब्राह्मणवाद समर्थक आलोचक के रूप में प्रचारित किया गया। हिन्दी में आलोचना की शुरूआत गद्य साहित्य के आविर्भाव से ही शुरू हो जाता है। द्विवेदी युग तक आते-आते हिन्दी आलोचना ने एक व्यवस्थित रूप को ग्रहण करना शुरू किया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस रूप को सामाजिक आधार प्रदान किया। ऐसा नहीं कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पहले यहाँ आलोचना की विधा कमजोर थी। ‘‘साहित्यालोचन की एक समृद्ध भारतीय परम्परा है। भरतमुनि के समय से साहित्यशास्त्र का निर्माण होता आया है। अनेक आचार्यों के दीर्घकालीन प्रयत्नों से क्रमशः रस, अलंकार, रीति, गुण, वक्रोक्ति और ध्वनि के सिद्धान्तों का निर्माण हुआ है। किन्तु जब हिन्दी आलोचना का विकास हुआ उस समय संस्कृत काव्यशास्त्र की यह महान् परम्परा विकृत हो चुकी थी। पंडितराज जगन्नाथ के पश्चात् सत्रहवीं शताब्दी से ही यह विकृति शुरू हो गई थी और मध्ययुग के ह्रासकालीन दरबारों के वातावरण में पली आलोचना की रीति-परम्परा रस के उपकरणों को लेकर नायिका-भेद, नख-शिख वर्णन और ऋतु वर्णन में ही सीमित हो गई।’’[1]

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Published

2020-04-01

How to Cite

[1]
“आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की हिन्दी आलोचना: A Critical Analysis of Acharya Ramchandra Shukla’s Contribution to Hindi Literary Criticism”, JASRAE, vol. 17, no. 1, pp. 214–220, Apr. 2020, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12614

How to Cite

[1]
“आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की हिन्दी आलोचना: A Critical Analysis of Acharya Ramchandra Shukla’s Contribution to Hindi Literary Criticism”, JASRAE, vol. 17, no. 1, pp. 214–220, Apr. 2020, Accessed: Sep. 20, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12614