भारत में विधिक सहायता का अधिकार: एक मानवीय दृष्टिकोण
विधिक सहायता: भारत में अवसरों की समानता और मानविकी दृष्टिकोण
Keywords:
विधिक सहायता का अधिकार, भारत, संविधान, न्यायालय, समानताAbstract
भारत का संविधान सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, न्याय तथा अवसरों की समानता सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान किये जाने की घोषणा करता है।निर्धन तथा सम्पन्न सभी लोगों के लिये न्यायालय के द्वार समान रूप से खुले हुये हैं, लेकिन देखने में यह आता है, कि-सम्पन्न व्यक्ति विधिक कार्यवाहियों में विधिक व्यवस्थाओं की सहायता प्राप्त करके विजय प्राप्त कर लेता है, जबकि निर्धन व्यक्ति धन के अभाव में न्याय प्राप्त करने में असमर्थ रहता है। निर्धन व्यक्ति को मामलों में आदेशिका शुल्क अथवा साक्ष्य व्यय न दे सकने के कारण भी पराजय का सामना करना पड़ता है। वैसे न्यायालय के द्वार सभी को खुलना पर्याप्त नही है, लेकिन समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक सहायता प्रदान कर समता के सिद्धांत को अग्रसर करना भी राज्य का उत्तरदायित्व है।Published
2020-04-01
How to Cite
[1]
“भारत में विधिक सहायता का अधिकार: एक मानवीय दृष्टिकोण: विधिक सहायता: भारत में अवसरों की समानता और मानविकी दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 17, no. 1, pp. 276–280, Apr. 2020, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12624
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Articles
How to Cite
[1]
“भारत में विधिक सहायता का अधिकार: एक मानवीय दृष्टिकोण: विधिक सहायता: भारत में अवसरों की समानता और मानविकी दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 17, no. 1, pp. 276–280, Apr. 2020, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/12624