ज्यां पाल सार्त्र का अस्तित्ववादी मानववाद: एक आलोचनात्मक अध्ययन

A Critical Study of Jean-Paul Sartre's Existentialism and Humanism

Authors

  • Dr. Brijendra Kumar Tripathi

Keywords:

ज्यां पाल सार्त्र, अस्तित्ववादी मानववाद, व्यक्तिवादी, मानव अस्तित्व, सैद्धांतिकी, अपूर्णता, सामूहिकता, उद्धेश्यहीनता, निरन्तर मृत्युबोध, अहसास

Abstract

ज्यां पाल सार्त्र एकल व्यक्तिवादी, प्रकृति और मानव अस्तित्व में क्रमों की क्षणिक निश्चितता, असम्बद्धता और अपूर्णता की एक सैद्धांतिकी निर्मित करने वाले ऐसे दार्शनिक हैं जो अपने अनुभवों और घटनाओं की तर्क-समबद्धता में एक अस्तित्ववादी संयोग ढ़ूँढ़ते ढ़ूँढ़ते समाजवादी सामूहिकता तक पहुँचते हैं लेकिन उन सामूहिक प्रयासों की परिणति को वे फिर भी व्यक्ति की स्वतंत्रता में ही समन्वित होते हुए देखते हैं। उद्धेश्यहीनता, अर्थहीनता और निरन्तर मृत्युबोध की स्थितियॉ कब समय की क्रुरता और अन्यायों से लड़ते लड़ते छिन्न-भिन्न हो गई सार्त्र को स्वयं इस का अहसास तब हुआ जब उन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में नाजियों ने बन्दी बना लिया। कुछ हो सकने की प्रतीक्षारत रिक्तता में बैठे रहने का अस्तित्वादी दर्शन उस समय की विस्तृत, विशाल लेकिन क्रूर ऐतिहासिक घटनाओं की पृष्ठभूमि में प्रमाणित से अधिक खंडित हुआ। सार्त्र के अस्तित्वादी दर्शन का प्रभाव उनके जीवन काल में ही कम पड़ गया था। उन्होंने व्यक्ति की स्वतन्त्रता और उसकी नियन्ता स्थिति के साथ सामाजिक जिम्मेवारी का समावेश करके अस्तित्ववाद को मार्क्सवाद की एक अंतर्धार के रूप में देखने की ईमानदार कोशिश की। वस्तुतः सार्त्र का अस्तित्ववादी दर्शन व्यक्ति की प्रधान्यता को न केवल स्वीकार करता है अपितु प्रत्येक मूल तत्वों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सभी तत्वों का केन्द्र व्यक्ति को ही मानता है। व्यापक फलक पर वह रेखांकित करता है कि अस्तित्ववाद मानव के अस्तित्व और उसकी स्वतंत्रता का पक्षपोषक है, उसके चिंतन के केन्द्र में व्यक्ति अथवा मानव है और उसका अस्तित्ववादी दर्शन मानववाद के प्रत्येक पहलुओं को गंभीरता से स्पष्ट करता है। प्रस्तुत शोध-आलेख अस्तित्ववाद के संदर्भ में ज्यां पाल सार्त्र के विचारों को क्रमबद्ध करता है जिसके चिंतन का मूल मानव है, जो अपनी चेतना के माध्यम से अपने स्वयं के मूल्यों का निर्माण करता है।

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Published

2021-07-01

How to Cite

[1]
“ज्यां पाल सार्त्र का अस्तित्ववादी मानववाद: एक आलोचनात्मक अध्ययन: A Critical Study of Jean-Paul Sartre’s Existentialism and Humanism”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 48–51, Jul. 2021, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13196

How to Cite

[1]
“ज्यां पाल सार्त्र का अस्तित्ववादी मानववाद: एक आलोचनात्मक अध्ययन: A Critical Study of Jean-Paul Sartre’s Existentialism and Humanism”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 48–51, Jul. 2021, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13196