याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म

याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म: मनुष्यों का सामान्य और राजा का अधिकारी धर्म

Authors

  • Smt. Anila Bathala

Keywords:

याज्ञवल्क्य स्मृति, राजधर्म, धर्म, मनुष्य, गुण, अधिकारी, राजा, सामान्य, शब्द

Abstract

राजधर्म को सभी धर्मों का सार या तत्त्व कहा जाता है, यह ज्ञातव्य है कि मनुष्य में बनाए रखने वाले गुण मानव धर्म कहे जाएगें तथा मनुष्यों में जो व्यक्ति किसी क्रिया विशेष के उत्तरदायित्व से युक्त होगा उसका धर्म भी सामान्य से भिन्न होगा यही अधिकारी धर्म है। अतः मनुष्यों में जो राजा होगा उसका धर्म भी उन साधारण से भिन्न होगा। इसलिए राजधर्म शब्द को प्रयोग किया गया है।

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Published

2021-07-01

How to Cite

[1]
“याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म: याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म: मनुष्यों का सामान्य और राजा का अधिकारी धर्म”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 160–163, Jul. 2021, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13218

How to Cite

[1]
“याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म: याज्ञवल्क्य स्मृति में राजधर्म: मनुष्यों का सामान्य और राजा का अधिकारी धर्म”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 160–163, Jul. 2021, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13218