हिन्दी के दलित आत्मकथाकार
The Significance of Dalit Autobiographies in Hindi Literature
Keywords:
हिन्दी, दलित आत्मकथाकार, दलित साहित्य, आत्मकथा लेखन, मराठी, डॉ. अम्बेडकर, दलित चेतना, आत्याचारAbstract
दलित साहित्य में कविता, कहानी, नाटक आदि साहित्यिक विधाओं की तरह आत्मकथाओं का एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदी साहित्य में जहाँ आत्मकथा लिखने की परंपरा प्राचीन नहीं है, आधुनिक है, वहीं हिदी आत्मकथा में दलित आत्मकथा की यह परंपरा मराठी में लिखी गई डॉ. अम्बेडकर की आत्मकथा मी कसा झाले (मैं कैसे बना) की प्रेरणा और प्रभाव से हिंदी दलित साहित्य में आत्मकथा लेखन की शुरूआत हुई। प्राचीन समय से लेकर आधुनिक काल तक दलित चेतना किसी-न-किसी रूप में विद्यमान थी। लेकिन इसकी व्यापकता आधुनिक काल में आकर एक साकार रूप धारण करती है, जहाँ पर दलित समाज अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करता हुआ नजर आता है, तथा साथ ही अपने अधिकारों की माँग भी करता है।Published
2021-07-01
How to Cite
[1]
“हिन्दी के दलित आत्मकथाकार: The Significance of Dalit Autobiographies in Hindi Literature”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 943–947, Jul. 2021, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13348
Issue
Section
Articles
How to Cite
[1]
“हिन्दी के दलित आत्मकथाकार: The Significance of Dalit Autobiographies in Hindi Literature”, JASRAE, vol. 18, no. 4, pp. 943–947, Jul. 2021, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13348