मांडलगढ़ में शाहपुरा शासको की जागीरों का ऐतिहासिक अध्ययन
शाहपुरा राज्य की जागीरों का मांडलगढ़ में ऐतिहासिक अध्ययन
Keywords:
मांडलगढ़, शाहपुरा, जागीरें, ऐतिहासिक अध्ययन, संघर्ष, सीमा, राज्य, वंशज, विवाद, राजाओंAbstract
मेवाड़ की पूर्वी सीमा पर स्थित मांडलगढ़ अपनी भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विरासत के कारण मेवाड़ में विशिष्ट स्थान रखता है। 14वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक मांड़लगढ़ को लेकर मेवाड़ राज्य का मालवा के सुल्तानों, मुगलों व बून्दी के हाड़ा शासकों से संघर्ष हुआ है। मांड़लगढ़ मेवाड का सीमावर्ती परगना था। इसमें खालसा गाँवों की संख्या पट्टे में आवंटित गाँवों से अधिक रही है। क्योंकि यहाँ आये दिन बाहरी आक्रमण का सदा भय बना रहता था। इस कारण कोई भी जागीरदार अपने लिए इस क्षेत्र में कोई जागीर नहीं लेना चाहता था। मांडलगढ़ परगने की सीमा शाहपुरा राज्य से लगती थी। शाहपुरा के राजवंश का उदय मेवाड़ महाराणा के वंश से ही हुआ है। सुजानसिंह ने मुगलबादशाह शाहजहाँ से फूलियाँ का पट्टा प्राप्त किया था। बाद में इस जागीरको एक राज्य के रूप में विकसित करने का प्रयास किया गया। इस कार्य में उन्हें काफी सफलता मिली। बाद में उनके वंशज भारतसिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब को अपनी सेवा से प्रभावित करके राजा का खिताब प्राप्त किया था।मेवाड़ महाराणा द्वारा ईनाम स्वरूप शाहपुरा के राजाओं को मांड़लगढ़ में जागीरें प्रदान की गई थी। मांड़लगढ़ के गाँव जागीर में मिलने से शाहपुरा के राजाओं ने मेवाड़ दरबार में अपनी सेवा अर्पित की है। मेवाड़ महाराणा द्वारा उन्हीं गाँवों की जागीर प्रदान की है जो शाहपुरा राज्य की सीमा पर स्थित है। ताकि शान्ति व्यवस्था बनी रहे और मांडलगढ़ के अन्य जागीरदारों व शाहपुरा के राजाओं के मध्य कोई विवाद उत्पन्नन हीं हो। मेवाड़ व शाहपुरा राज्य के मध्य कई बार विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर महाराणा द्वारा उनकी मांडलगढ़ में स्थिति जागीर को जब्त भी किया गया है।उम्मेदसिंह द्वारा मांडलगढ़ के अमरगढ़ के भौमियादलेल सिंह की हत्या व अमरगढ़ पर आक्रमण के बाद मेवाड़ महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने उनकी पारोली की जागीर जब्त की है साथ ही फौज खर्च हेतु एक लाख का जुर्माना भी किया गया है। मांडलगढ़ की बड़लियास गाँव की जागीर तो हमेशा से ही शाहपुरा के राजवंश हिम्मत सिंह के वंशजों के पास रही हैं। महाराणा द्वारा समय-समय उनकी जागीर में अन्य गाँव भी सम्मिलित किये गये है। बड़लियास के जागीरदारों ने मेवाड़ दरबार में अपनी सैनिक सेवा प्रदान की है। महाराणा अरिसिंह द्वितीय ने तो उम्मेद सिंह होमेवाड़ की रक्षार्थ में उपस्थित होने के लिए काछोला की जागीर प्रदान कर दी थी साथ ही मांडलगढ़ का किला भी देने का वादा कर दिया था। एक समय में मांडलगढ़ परगने का लगभग आधा भू-भाग शाहपुरा के शासकों को जागीर में दे दिया गया था। आपसी कई विवादों के होते हुए भी मेवाड़ महाराणा व शाहपुरा के मध्य मधुर सम्बन्ध कायम रहे हैं। महाराणा द्वारा अन्य कई सरदारों को भी मांडलगढ़ में गाँव जागीर में दिये है। मांडलगढ़ में मराठों की लूटपाट के समय भी शाहपुरा के राजाओं ने वहाँ के अन्य जागीरदारों व ग्रामीणों की रक्षा की हैं क्योंकि मेवाड़ की सेना के मांडलगढ़ पहुँचने में समय लगता था जबकी शाहपुरा की सेना निकट होने के कारण उनकी सहायतार्थ शीघ्र पहुँच जाती थी।Published
2022-01-01
How to Cite
[1]
“मांडलगढ़ में शाहपुरा शासको की जागीरों का ऐतिहासिक अध्ययन: शाहपुरा राज्य की जागीरों का मांडलगढ़ में ऐतिहासिक अध्ययन”, JASRAE, vol. 19, no. 1, pp. 60–65, Jan. 2022, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13686
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Articles
How to Cite
[1]
“मांडलगढ़ में शाहपुरा शासको की जागीरों का ऐतिहासिक अध्ययन: शाहपुरा राज्य की जागीरों का मांडलगढ़ में ऐतिहासिक अध्ययन”, JASRAE, vol. 19, no. 1, pp. 60–65, Jan. 2022, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13686