भारतीय समाज के सन्दर्भ में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता
व्यापकता और धार्मिकता के सन्दर्भ में
Keywords:
सामाजिक न्याय, भारतीय समाज, व्यापक, बहुआयामी, स्थापना, निरन्तरता, व्यक्ति, परिवार समुदाय, राष्ट्र, राज्यAbstract
सामाजिक न्याय विश्व की श्रेष्ठ अवधारणा है जो बहुत व्यापक और बहुआयामी है। यह एक आदर्श स्थिति है जिसकी स्थापना, अनुभूति, निरन्तरता तथा व्यवहार आंशिक रूप ही सम्भव हो पायेंगे। यह व्यक्ति, परिवार समुदसक राष्टं और राज्य से सम्बन्धित है। जिस तरह पमाजिक न्याय की प्म्भावना हर क्षण हर जगह हो सकती है उसी तरह इसका निषेध और उल्लंघन हर क्षण हर जगह हो सकता है। इसका सीधा सम्बन्ध देश-काल की परिस्थिति मानव समाज, मानवीय मूल्य, प्रकार का स्वरूप और उनकी इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति से है। सामाजिक न्याय का सकारात्मक अथवा नकारात्मक बभाव विशेषकर निर्धन, अपेक्षित, पीड़ित, दलित, शोषित, असहाय, विकलांग एवं कमजोर वर्ग पर पड़ता है। अतः सामाजिक न्याय का क्षेत्र व्यापक और बहुआयामी है इसलिये बाथमिकताओं का चयन करना होगा।Published
2022-01-01
How to Cite
[1]
“भारतीय समाज के सन्दर्भ में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता: व्यापकता और धार्मिकता के सन्दर्भ में”, JASRAE, vol. 19, no. 1, pp. 384–387, Jan. 2022, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13740
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Articles
How to Cite
[1]
“भारतीय समाज के सन्दर्भ में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता: व्यापकता और धार्मिकता के सन्दर्भ में”, JASRAE, vol. 19, no. 1, pp. 384–387, Jan. 2022, Accessed: Mar. 10, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13740