भारतीय समाज में बौद्ध शिक्षा का स्वरूप
The Significance of Buddhist Education in Indian Society
Keywords:
भारतीय समाज, बौद्ध शिक्षा, उत्तर वैदिक काल, जन-जीवन, बौद्ध धर्म, बौद्धकालीन शिक्षा, मानव के कर्म, शिक्षण विधियों, अनुशासन सम्बन्धी अवधारणा, लोकतंत्रAbstract
उत्तर वैदिक काल में सामाजिक-धार्मिक कर्मकाण्डों की प्रधानता होने के कारण जन-जीवन जटिल होने लगा था। समाज अनेक वर्गों में बट गया था तथा निम्न वर्गों को शिक्षा से वंचित रखा जाने लगा था। उसके बाद बौद्ध धर्म का उदय हुआ। बौद्धकालीन शिक्षा ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी से अस्तित्व में आई महात्मा बुद्ध ने वैदिक कालीन शिक्षा की बुराइयों को दूर करते हुए इस शिक्षा की शुरूआत की। यह सभी वर्गों के लिये थी। बौद्ध शिक्षा मानव के धर्म की अपेक्षा मानव के कर्म को महत्व देती थी। बौद्ध दार्शनिकों ने उचित शिक्षा के लिये अनेक प्रभावी शिक्षण विधियों का विकास किया, बौद्धों ने सभी को नियमों का पालन करने का उपदेश दिया है और इसी को वे अनुशासन कहते हैं। बौद्ध शिक्षा की अनुशासन सम्बन्धी यह अवधारणा आज लोकतन्त्रीय जीवन के लिये बड़ी आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता तो इसी बात पर निर्भर करती है कि सब अपने-अपने कत्र्तव्यों का पालन ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें।Published
2022-04-01
How to Cite
[1]
“भारतीय समाज में बौद्ध शिक्षा का स्वरूप: The Significance of Buddhist Education in Indian Society”, JASRAE, vol. 19, no. 3, pp. 460–463, Apr. 2022, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13903
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Articles
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[1]
“भारतीय समाज में बौद्ध शिक्षा का स्वरूप: The Significance of Buddhist Education in Indian Society”, JASRAE, vol. 19, no. 3, pp. 460–463, Apr. 2022, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/13903