गाँधी दर्शन एवं वर्तमान विश्व राजनीति के बदलते परिप्रेक्ष्य
Keywords:
गाँधी दर्शन, वर्तमान विश्व राजनीति, मानव जाति, वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति, व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर, उरजीविता का संकट, वैज्ञानिक प्रौद्योगिकीय विकास, राजनैतिक संगठन, अर्थव्यवस्था, संस्कृतिAbstract
वर्तमान विश्व राजनीति के बदलते परिप्रेक्ष्य में मानव जाति आषा एवं आकांक्षा के संयुक्त भाव से भविष्य की ओर देख रही है। एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति का अपार वैभव एवं तिलिस्म है, वही दूसरी ओर व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर बढती हिंसा एवं प्रतिस्पर्धा ने नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को विस्मृत कर जीवन को अस्थिर एवं असुरक्षित बना दिया है। आज उरजीविता का भयावह संकट विश्वव्यापी चिंता का विषय बन गया है।वैज्ञानिक प्रौद्योगिकीय विकास, राजनैतिक संगठन एवं प्रक्रिया, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, सामाजिक अंतर्सम्बन्ध एवं व्यक्ति की मानवीयता सभी क्षैत्रों में निरंतर बदलाव दिखाई देता है। इस परिवर्तन का क्षैत्र एवं प्रभाव इतना व्यापक है कि कभी ‘इतिहास के अन्त‘ की चर्चा होती है, तो कभी ‘सामाजिकता की समाप्ति‘ की तथा कभी औद्योगिक व्यवस्था एवं प्रबन्धन के विरासत की समाप्ति की। बढता हुआ भूमण्डलीकरण राज्य की संप्रभुता, सामाजिक-सांस्कृतिक बहुलता एवं व्यक्ति की स्वायता के संदर्भो में अब तक की संभवतः सबसे गम्भीर चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। सदी के अंतिम दशक में समाजवादी राजव्यवस्थाओं के विघटन के बाद यह धारणा बलवती हुई है कि अब विश्व में मात्र पूँजीवादी-उदारवादी विकल्प ही शेष है तथा यही श्रेष्ठतम विकल्प भी है। यह धारणा नितांत भ्रामक है।References
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