दलित चेतना का क्रांति सूर्य: उजास
Keywords:
दलित चेतना, जातिगत विभेद, उत्पीड़न, मानवीय अधिकार, मन्दिर प्रवेश, स्कूल, संघर्ष, चुनाव, सत्ताAbstract
आधुनिक भारत में आज भी जातिगत विभेद एक कटु सत्य है और जातिगत उत्पीड़न उससे भी बड़ा कटु सत्य है। आज शास्त्रोक्त विधान की यह कटुता भारतीयों की नस-नस में समाई है। पग-पग पर दलित जातियों का तिरस्कार, उनके मानवीय व संवैधानिक अधिकारों का हनन, मंदिर आदि धार्मिक स्थल पर उनके जाने पर अघोषित मनाही और पिटाई की खबरें रोज अखबारों में छपती हैं। तरह-तरह के प्रलोभनों द्वारा उनके मतों का दुरुपयोग कोई छिपी हुई बात नहीं है। रत्नकुमार सांभरिया द्वारा रचित विवेच्य नाटक'उजास' इसी समस्या को लेकर उपस्थित होता है। यद्यपि वाल्मीकि बाहुल्य गांव है, लेकिन पंचायत के चुनाव में सरपंच बनता है, कोई सवर्ण। उन्हें तो गांव के मंदिर में प्रवेश का अधिकार भी नहीं है। धार्मिक अंधास्था और मोक्ष प्राप्ति की चाह हर छोटे-बड़े में है, यहां। लेकिन दलित का तो मंदिर प्रवेश ही निषेध है। पंचायत के चुनाव में भावी सरपंच बनने का ख्वाब पालने वाला हर सख्श वाल्मीकि बस्ती वालों को मंदिर प्रवेश का प्रलोभन देकर उनके वोट हासिल करना चाहता है। हर कोई उम्मीदवार उनकी इसी धार्मिक भावना का शोषण करना चाहता है। यद्यपि, इस प्रयास में वे पहले पिटाई खा चुके हैं। चतुर वाग्वीर पंडित रामानंद उनको मंदिर प्रवेश का प्रलोभन देकर चुनाव जीतना चाहता है। वह डॉक्टर अंबेडकर द्वारा मनुस्मृति दहन और कालाराम मंदिर प्रवेश की याद दिलाकर उनमें जोश भरता है, सहानुभूति प्रकट करता है। लेकिन पढ़ा-लिखा कालू सिंह बस्ती वालों को इस शातिर खेल से आगाह करता है। वह मंदिर से अधिक स्कूल में पढ़ने पर जोर देता है, लेकिन भावुकता में वे कालिया की उपेक्षा कर पंडित रामानंद की बात मानते हैं और मंदिर प्रवेश करने के प्रयास में फिर ठुक-पिटकर बैठ जाते हैं। कालिया उन्हें डॉक्टर अंबेडकर के आदर्श वाक्य 'शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो।' की ओर ध्यान दिलाता है। साथ ही उसने समझाया कि सम्मानजनक ढंग से जीने के लिए बाबा की इस बात पर अमल करना होगा कि 'यदि अपनी दुर्दशा से पार पाना चाहते हो तो तुम्हें गंदे धंधे छोड़ने होंगे।' मंदिर प्रवेश की चाह में चतुर राजनीतिबाजों द्वारा दोबारा पिटवाने पर उन्हें सवर्ण समाज की छलना समझ आ जाती है और वे पढ़े-लिखे कालिया की बात मानकर मैला ढोने के औजारों की होली जला देते हैं और सरपंची के चुनाव में कालिया (कालू सिंह) को उम्मीदवार बनाते हैं और चुनाव जीत जाते हैं। सत्ता की चाभी पाने के लिए एकजुट होकर अपने दम पर चुनाव लड़ना एक नई क्रांति का आगाज है। परिवर्तन की एक नई बयार बहती दिखाई देती है।References
अनुच्छेद 38,राज्य की नीति के निदेशक तत्व, भाग-4, भारत का संविधान।
प्रस्तावना, भारत का संविधान
मौर्य सर्वेश कुमार, संपादक, दलित नाटक की आलोचना, पृष्ठ 16
वही, पृष्ठ 16
रत्नकुमार सांभरिया, वीणा, भभूल्या, उजास तीन नाटक, अंक -1, दृश्य -1, पृष्ठ 1
वही, पृष्ठ 167
वही, पृष्ठ 167
वही, पृष्ठ 167
वही, पृष्ठ 195
वही, पृष्ठ 195
वही, पृष्ठ 195
वह, पृष्ठ 177
वही, पृष्ठ 184
वही पृष्ठ 199