भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन:- योगेन्द्र सिंह के विचार
Keywords:
संस्कृतिकरण, विसंस्कृतिकरण, पुनःसंस्कृतिकरण इस्लामीकरण, पश्चिमीकरण, आधुनिकरण, भूमंडलीकरण, लघु व वृहत् परंपराAbstract
अन्य समाजों की तरह भारतीय समाज भी निरंतर परिवतनों के दौर से गुजरता रहा है। इसके परिर्वतन की प्रक्रिया समाजशास्त्रियों के लिए चिंतन का विषय रहा है। एम एन श्रीनिवासन ने परिर्वतन की प्रक्रिया को आंतरिक कारकों से जोड़ कर देखा। उन्होंने लिखा है कि भारतीय समाज कभी भी गतिहीन नहीं रहा। जब भारतीय समाज का बाहरी समाजों से सम्पर्क नहीं था तब भी धीमी गति से समाज बदलाव से गुजर रहा था। उनके मतानुसार यह ऐसा परिवर्तन था जिसमें निम्न जातियां उच्च जातियों की संस्कृति का अनुसरण कर समाज में अपना स्थान ऊंचा करने का प्रयास कर रही थी। इस प्रक्रिया को उन्होंने संस्कृतिकरण के रूप में परिभाषित किया है।प्रकार्यवादी श्रीनिवास का मानना है कि भारतीय समाज प्राचीन काल से ही आंतरिक कारकों की वजह से गति धीमी से परिवर्तित होता रहा है। उन्होंने नवीन परिवर्तनों को पश्चिम के प्रभाव के रूप विश्लेषित किया है। पश्चिम के इस प्रभाव को पश्चिमीकरण के परिभाषित किया है। ए आर देसाई ने परिर्वतन की प्रक्रिया को मार्क्सवादी दृष्टिकोण से विश्लेषित किया। उन्होंने आर्थिक कारकों को आधार बनाकर वाद, प्रतिवाद तथा संवाद के माध्यम में समझाया है। उन्होंने सम्पूर्ण स्वतन्त्रता आन्दोलन को आर्थिक कारकों की पृष्ठभूमि में परिभाषित किया है। योगेन्द्र सिंह किसी एक उपागम की बजाय विभिन्न उपगमों के एकीकृत मॉडल को आधार बनाकर भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया को समझाते हैं। वे भारतीय समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया को संस्कृति व संरचना में बदलाव के माध्यम से विश्लेषित करते है। उनके अनुसार भारतीय समाज में परिवर्तन परंपराओं के आधुनिकीकरण का परिणाम है। उन्होंने परम्परों को लघु व वृहत् परम्परा के रूप में विभाजित करते हुए परिवर्तन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को स्पष्ट किया है।
References
योगेन्द्र सिंह का समाजशास्त्र, अमर कुमार, रावत पब्लिकेशंस, 2005
भारतीय परंपरा का आधुनिकीकरण, योगेन्द्र सिंह , पेंगुइन बुक लिमिटेड, 1986