शीत-युद्ध के बाद भारत- अमेरिका संबंध और चीन
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https://doi.org/10.29070/wzb7ac15Keywords:
शीत-युद्ध, अमेरिका-भारत परमाणु समझौता, चीन का उदय, भू-राजनीतिक संतुलन, गुट-निरपेक्ष नीतिAbstract
शीत-युद्ध के बाद, भारत-अमेरिका संबंधों में महत्वपूर्ण परिवर्तन और विकास देखा गया है। शीत-युद्ध के दौरान, भारत की गुट-निरपेक्ष नीति और अमेरिका का पाकिस्तान के साथ गठबंधन, दोनों देशों के संबंधों में प्रमुख बाधाएं थीं। शीत-युद्ध के अंत के साथ, वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आया और भारत और अमेरिका के बीच नए अवसरों और साझेदारियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस सारांश में शीत-युद्ध के बाद के भारत-अमेरिका संबंधों के विकास और चीन पर उनके प्रभावों को विस्तार से समझाया गया है। शीत-युद्ध के समय, भारत और अमेरिका के संबंध जटिल थे। भारत ने गुट-निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया, जबकि अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ गठबंधन किया था। यह गठबंधन और भारत की गुट-निरपेक्ष नीति दोनों देशों के बीच करीबी संबंधों में बाधा बने रहे।
1991 में, भारत के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव द्वारा आर्थिक उदारीकरण की पहल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया। इससे भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों में वृद्धि हुई। 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद दोनों देशों के संबंधों में अस्थायी तनाव आया। अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन इसके बाद हुए संवाद और बातचीत ने 2005 में एक ऐतिहासिक समझौते की नींव रखी। इस समझौते को अमेरिका-भारत परमाणु समझौते के रूप में जाना जाता है, जिसने नागरिक परमाणु सहयोग को प्रोत्साहन दिया। इसके बाद, द्विपक्षीय रक्षा सहयोग और रणनीतिक साझेदारी में तेजी आई, जिसमें प्रमुख रक्षा समझौतों और सैन्य अभ्यासों का समावेश रहा।
21वीं सदी में, भारत-अमेरिका संबंधों ने व्यापक आर्थिक, तकनीकी, और शैक्षिक आदान-प्रदान के माध्यम से और भी मजबूती प्राप्त की है। इसमें द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का महत्वपूर्ण योगदान रहा। प्रमुख रक्षा समझौते, जैसे लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) और कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA), दोनों देशों के बीच सैन्य और रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देते हैं। आर्थिक संबंधों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हासिल किए गए। इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच तकनीकी और शैक्षिक आदान-प्रदान भी बढ़े।
चीन का उदय एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में भारत-अमेरिका संबंधों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दोनों देश चीन की बढ़ती शक्ति और प्रभाव को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देखते हैं। इस संदर्भ में, क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा संवाद), जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, एक महत्वपूर्ण पहल है। क्वाड का उद्देश्य एक मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को सुनिश्चित करना है, जो चीन की आक्रामक नीतियों का मुकाबला करने के लिए विकसित किया गया है।
भारत-अमेरिका की घनिष्ठ साझेदारी चीन के लिए एक रणनीतिक चुनौती के रूप में उभरी है। चीन ने अपनी प्रतिक्रिया में कई कूटनीतिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं। इसमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) जैसी पहलें शामिल हैं, जिनका उद्देश्य क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन के प्रभाव को बढ़ाना है। भारत-अमेरिका संबंधों का विकास और चीन पर उनके प्रभाव ने एशिया में एक नई भू-राजनीतिक संतुलन की आवश्यकता को जन्म दिया है।
भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य कई क्षेत्रों में सहयोग और संघर्ष दोनों की संभावनाओं के साथ आगे बढ़ेगा। इसमें तकनीकी सहयोग, आर्थिक साझेदारियाँ, और वैश्विक चुनौतियों का सामना करना शामिल है। साथ ही, चीन के साथ बदलते समीकरण और एशियाई सुरक्षा संरचना पर भी इन संबंधों का गहरा प्रभाव पड़ेगा।
शीत-युद्ध के बाद भारत-अमेरिका संबंधों का विकास क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया है। विशेष रूप से, चीन के संदर्भ में यह संबंध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत और अमेरिका की बढ़ती साझेदारी और चीन की प्रतिक्रिया ने एशिया में एक नई भू-राजनीतिक संतुलन की आवश्यकता को जन्म दिया है। भविष्य में, यह संबंध और भी गहरे और व्यापक हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार, शीत-युद्ध के बाद भारत-अमेरिका संबंधों का विकास और उनके चीन पर प्रभाव वैश्विक और क्षेत्रीय भू-राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए हैं।
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