भारत में पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा: सामाजिक कलंक और कानूनी उपचार का सामंजस्य
DOI:
https://doi.org/10.29070/hmmpa761Keywords:
घरेलू हिंसा, पुरुष पीड़ित, सामाजिक कलंक, लैंगिक समानता, न्यायिक असमानता, कानूनी सुधार, मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक संरचना, समर्थन प्रणाली, सामाजिक जागरूकताAbstract
भारत में घरेलू हिंसा की चर्चा प्रायः महिलाओं के संदर्भ में केंद्रित रही है। अधिकांश कानूनी प्रावधान और नीतियाँ महिलाओं की सुरक्षा हेतु तैयार की गई हैं, किंतु पुरुषों के विरुद्ध होने वाली हिंसा को अक्सर नज़रअंदाज़ किया गया है। इस शोध लेख का उद्देश्य पुरुष पीड़ितों के अनुभवों, सामाजिक कलंक, न्यायिक असमानताओं तथा कानूनी ढांचे की सीमाओं का विश्लेषण करना है। यह लेख यह दर्शाता है कि किस प्रकार पुरुषों की पीड़ा न केवल समाज की पारंपरिक धारणाओं के कारण अदृश्य हो जाती है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में असमानता भी उन्हें न्याय से वंचित करती है। साथ ही इसमें पुरुषों के लिए समान कानूनी संरक्षण, सामाजिक समर्थन और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस प्रकार, यह अध्ययन यह सिद्ध करने का प्रयास है कि घरेलू हिंसा केवल महिलाओं की समस्या नहीं है, बल्कि पुरुष भी इसके शिकार होते हैं और उन्हें भी न्याय व संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
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