आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति

आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति: सौन्दर्य और आनन्द की उत्पत्ति

Authors

  • Dr. Anju Srivastava

Keywords:

आदिवासी समाज, नारी, स्थान, संगीत, कला संस्कृति, सौन्दर्य, आनन्द, मूर्त्त रूप, चिरन्तन अभिलाषा, मानव

Abstract

सौन्दर्य तथा आनन्द का उपभ¨ग करने तथा उन्हें एक मूत्र्त रूप देने की चिरन्तन अभिलाषा मानव में सदा से ही है। मानव अपने कष्टों को, दुःख और दुर्दशा को उसी में डुबो देना चाहता है, उसे भूल जाना चाहता है। संगीत के स्वर में या नृत्य की ताल में वह विभ¨र हो जाता है, सब-कुछ भूल जाता है। संगीत तथा नृत्य में मानव-जीवन का हास-उल्लास सभी-कुछ व्यक्त है। इसी कारण संगीत तथा नृत्य की उत्पत्ति उसी दिन से है जिस दिन मानव ने हँसना और रोना सीखा है, विभिन्न मुद्राओं के माध्यम से अपने मन को अभिव्यक्त करना जान लिया है।

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Published

2016-04-01

How to Cite

[1]
“आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति: आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति: सौन्दर्य और आनन्द की उत्पत्ति”, JASRAE, vol. 11, no. 21, pp. 0–0, Apr. 2016, Accessed: Aug. 06, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/5967

How to Cite

[1]
“आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति: आदिवासी समाज में नारी का स्थान एवं संगीत कला संस्कृति: सौन्दर्य और आनन्द की उत्पत्ति”, JASRAE, vol. 11, no. 21, pp. 0–0, Apr. 2016, Accessed: Aug. 06, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/5967