धर्म की सच्ची अवधारणा
Exploring the Essence of Dharma in Modern Society
Keywords:
धर्म, सत्य, आदर्श, परम्परा, नियमAbstract
धर्म अपने आप में एक पूर्ण सत्य है। धर्म आदर्शों, उच्च परम्पराओं और सही नियमों का संग्रह है जो प्राचीन संस्कृति को हमारे पूर्वजों से लेकर आधुनिक मानव तक पहुँचाता है। धर्म का वास्तविक अर्थ है-विचार, शब्द और कार्य में धार्मिक गुण होना। धर्म के विषय में हर व्यक्ति अपनी-अपनी परिभाषा देता है। हर ग्रन्थ, हर सम्प्रदाय में धर्म के विषय में लिखा गया है, बताया गया है और लोग उस पर विश्वास करके धर्म के उन विचारों को अपनाते हैं तथा अपने जीवन में उतारते हैं। किन्तु जब हम अलग-अलग ग्रन्थों व पुस्तकों को पढ़ते हैं, साधु-संतों के विचार सुनते हैं और कुछ धर्म के ठेकेदारों के विचार सुनते हैं तो मन में धर्म के प्रतिकुछ प्रश्न भी उठते हैं। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमें गहराई से विचार करना चाहिए। आज का युग विज्ञान का युग है। आज प्रत्येक व्यक्ति हर चीज़ को अच्छी तरह से देख-परख करत भी उस पर विश्वास करता है। अतः आज के युग में धर्म अपने रूढ़ीवादी विचारों से मुक्त होकर नवीन रूप में जनसाधारण में अपनाया जा रहा है जिसका रूप अत्यन्त भ्रातृ भावपूर्ण, आनन्दमयी, विकसित, परमार्थ तथा अनेकता में एकता लिए हुए है और यही वास्तव में धर्म का सच्चा आधार है।Published
2016-10-01
How to Cite
[1]
“धर्म की सच्ची अवधारणा: Exploring the Essence of Dharma in Modern Society”, JASRAE, vol. 12, no. 23, pp. 396–399, Oct. 2016, Accessed: Jun. 08, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6160
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Section
Articles
How to Cite
[1]
“धर्म की सच्ची अवधारणा: Exploring the Essence of Dharma in Modern Society”, JASRAE, vol. 12, no. 23, pp. 396–399, Oct. 2016, Accessed: Jun. 08, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6160