प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में ब्रह्मचर्याश्रम संबंधी मान्यताएँ

आश्रम-व्यवस्था और प्राचीन भारतीय समाज

Authors

  • Dr. Sanjay Kumar

Keywords:

प्राचीन भारत, सामाजिक जीवन, ब्रह्मचर्याश्रम संबंधी मान्यताएँ, वर्ण-व्यवस्था, आश्रमों की व्यवस्था

Abstract

प्राचीन भारतीय शास्त्रकारों ने सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करने एवं उनके सुचारू रूप से संचालन के लिए जिस प्रकार वर्ण-व्यवस्था का संगठन किया था उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन को शिष्ट एवं संतुलित बनाए रखने के लिए आश्रमों की व्यवस्था की थी। मनुष्य का जीवन एकपक्षीय होने पर पूर्ण और सफल नहीं सकता है, अतः यह आवश्यक है कि जीवन मे विभिन्न प्रकार के कर्मों को किया जाय ताकि नीरसता न रहे एवं भैातिक सुख का आनंद लेते हुए परलोक हित के लिए भी प्रयत्न किया जाय। इसी आवश्यकता ने प्राचीन भारत में आश्रम-व्यवस्था को जन्म दिया जिसके द्वारा व्यक्ति स्वयं का विकास करते हुए समाज का भी कल्याण कर सकता था। प्राचीन विचारकों के अनुसार यह एक यज्ञ है, जिसके द्वारा उद्वेश्यों के प्रति व्यक्ति में समर्पण की भावना उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत शोध-आलेख के अध्ययन का मुख्य विषय प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में प्रचलित ब्रह्मचर्य-आश्रम संबंधी मान्यताओं को उल्लेखित करता है। प्राचीन भारत में आश्रम-व्यवस्था की उत्पत्ति एवं उससे संबंधित महत्वपूर्ण धारणाओं को भी इस शोध-आलेख में अध्ययन के तौर पर समाहित किया गया है।

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Published

2016-10-01

How to Cite

[1]
“प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में ब्रह्मचर्याश्रम संबंधी मान्यताएँ: आश्रम-व्यवस्था और प्राचीन भारतीय समाज”, JASRAE, vol. 12, no. 23, pp. 472–475, Oct. 2016, Accessed: Jun. 08, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6173

How to Cite

[1]
“प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन में ब्रह्मचर्याश्रम संबंधी मान्यताएँ: आश्रम-व्यवस्था और प्राचीन भारतीय समाज”, JASRAE, vol. 12, no. 23, pp. 472–475, Oct. 2016, Accessed: Jun. 08, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6173