रामचरितमानस में सामाजिक पर्यावरण चेतना

व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ सर्वाधिक प्रभावी समाजिक पर्यावरण संरक्षण

Authors

  • Suman Lata
  • Prof. Manvendra Pathak

Keywords:

रामचरितमानस, सामाजिक पर्यावरण चेतना, पर्यावरण संकल्पना, व्यापक संसाधन, जैविक घटक, मनुष्य, मस्तिष्क, आवेग, चेतना

Abstract

पर्यावरण की संकल्पना अत्यंत व्यापक है हमारे चारों ओर व्याप्त संसाधन ही जैविक और अजैविक रूप से पर्यावरण की रचना करते हैं यानि पर्यावरण हमारे चारों ओर का आवरण है। मनुष्य भी पर्यावरण संरचना के जैविक घटक का महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग है चेतना का विकास मानव मस्तिष्क से हुआ है। मस्तिष्क तक पहुँचने वाले आवेग सवेंग, चितंन ही चेतना को जन्म देते हैं।

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Published

2017-01-01

How to Cite

[1]
“रामचरितमानस में सामाजिक पर्यावरण चेतना: व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ सर्वाधिक प्रभावी समाजिक पर्यावरण संरक्षण”, JASRAE, vol. 12, no. 2, pp. 667–670, Jan. 2017, Accessed: Aug. 07, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6319

How to Cite

[1]
“रामचरितमानस में सामाजिक पर्यावरण चेतना: व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ सर्वाधिक प्रभावी समाजिक पर्यावरण संरक्षण”, JASRAE, vol. 12, no. 2, pp. 667–670, Jan. 2017, Accessed: Aug. 07, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6319