हिन्दी उपन्यासों में सामाजिक चेतना: स्वरुप एवं आयाम
-
Keywords:
हिन्दी उपन्यासों, सामाजिक चेतना, स्वरुप, आयाम, प्रत्येक साहित्यकार, रचनाकार, व्यक्ति, समाज, परिवेशAbstract
प्रत्येक साहित्यकार रचनाकार होने से पहले व्यक्ति है और इसी कारण वह समाज से आस-पास के परिवेश से जुड़ा हुआ हैPublished
2017-07-01
How to Cite
[1]
“हिन्दी उपन्यासों में सामाजिक चेतना: स्वरुप एवं आयाम: -”, JASRAE, vol. 13, no. 2, pp. 196–199, Jul. 2017, Accessed: Aug. 21, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6786
Issue
Section
Articles
How to Cite
[1]
“हिन्दी उपन्यासों में सामाजिक चेतना: स्वरुप एवं आयाम: -”, JASRAE, vol. 13, no. 2, pp. 196–199, Jul. 2017, Accessed: Aug. 21, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6786