समकालीन हिन्दी उपन्यास में साम्प्रदायिकता
भावनाएँ और आंतरिक जीवन का प्रतिबिम्ब: समकालीन हिन्दी उपन्यास
Keywords:
समकालीन हिन्दी उपन्यास, साम्प्रदायिकता, साहित्य जीवन, अभिव्यक्ति, लेखा-जोखा, चित्रांकनAbstract
साहित्य जीवन की संचित अनुभूतियो का प्रतिबिम्ब होता है कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, संस्मरण इत्यादि के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक भावनाओ को अभिव्यक्त करता है समाज में घटने वाली घटनाओ से रचनाकार आंदोलित होता है, और शब्दों के माध्यम से उसे अंकित कर वापस समाज को दे देता है सह्रदय पाठक इन भावनाओ के साथ जुड़ा हुआ महसूस करता है उपन्यास की खासियत यह है, कि इसमे मनुष्य के पुरे जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा सकता है उपन्यास का कैनवास काफी बड़ा होता है, जिसमे जीवन की कई घटनाओ का चित्रांकन एक साथ हो सकता है उपन्यास की ओर मेरे आकृष्ट होने का कारण भी यही हैPublished
                                                  2017-07-01
                                                
            How to Cite
[1]
“समकालीन हिन्दी उपन्यास में साम्प्रदायिकता: भावनाएँ और आंतरिक जीवन का प्रतिबिम्ब: समकालीन हिन्दी उपन्यास”, JASRAE, vol. 13, no. 2, pp. 570–572, Jul. 2017, Accessed: Nov. 04, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6858
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                Articles
              
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[1]
“समकालीन हिन्दी उपन्यास में साम्प्रदायिकता: भावनाएँ और आंतरिक जीवन का प्रतिबिम्ब: समकालीन हिन्दी उपन्यास”, JASRAE, vol. 13, no. 2, pp. 570–572, Jul. 2017, Accessed: Nov. 04, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6858
						
              





