योगेन्द्र दत्त शर्मा व हरिशंकर आदेश रचित सप्तशतियों में सौंदर्य बोध एवं रसानुभूति
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Keywords:
योगेन्द्र दत्त शर्मा, हरिशंकर आदेश, सप्तशतियों, सौंदर्य बोध, रसानुभूति, काव्य, सौन्दर्य, भाषा, प्रकृति, मानव सौन्दर्यAbstract
रमणीय या सुंदर अर्थों का प्रतिपदन करने वाला शब्द ही काव्य है। सौन्दर्य विहीन काव्य काव्य नहीं है। विश्व का सौन्दर्य, बाल्मीकि, कालिदास, कबीरदास, तुलसीदास एवं जय शंकर प्रसाद के काव्यों में दृष्टिगोचर होता है। प्रकृति सौन्दर्य मानव सौन्दर्य, दिव्य सौन्दर्य एवं भाषा सौन्दर्य आदि काव्य में ही विद्यमान होता है।सौन्दर्य प्रेमी कवि विश्वांगन में बिखरे सौन्दर्य के विविध रूपों को काव्य में प्रस्तुत कर उसे मुस्कराता मधुबन बना देता है। काव्य में कठीं लहलहारी कृषि दृष्टिगोचर होती है, कहीं पर कल-कल का संगीत करती सरिता अपने प्रेमी सागर से मिलने जाती दिखलाई पड़ती है, कहीं झर-झर करते झरने उद्दाम गति से गीत गाते दिखलाई सुनाई पड़ते हैं। खग का कलरव, कलियों का चटकना, सूर्य का उदय होना, बादलों का झड़ी लगाना, बादल फटना आदि सौन्दर्य का रूप काव्य में देखा जा सकता है। सौन्दर्य की यह शोभा विविधता में काव्य में उभर कर उसे प्राणवान बना देती है।सृष्टि में कण-कण में सौन्दर्य व्याप्त है। रामात्मक लगाव संसार को परस्पर आपस में बांधे हुए है। प्रेम एवं सौन्दर्य मानव के स्वभाविक आकर्षण के आधार हैं। सहजाकर्षण ही सौन्दर्य है। मानव जन्मजात सौन्दर्य प्रेमी है। सौन्दर्य दर्शन में प्रेम के उद्भव की संभावना होती है। मानव का बाह्य सौन्दर्य बाह्य चक्षु से देखा जा सकता है, अतः सौन्दर्य भाव मात्र अंत चक्षुओं से देखा या अनुभव किया जा सकता है। सौन्दर्य का वास्तविक स्वरुप बाह्य एवं अंतः सौन्दर्य के सामंजस्य में दृष्टिगोचर होता है। शारीरिक सौन्दर्य के साथ-साथ मानसिक सौन्दर्य की समान्वति ही मानव को आदर्श सौन्दर्य प्रदान करती है। यह आदर्श सौन्दर्य काव्य में विद्यमान होता है। सौन्दर्य मानसिक आनंद एवं संतुष्टि काव्य के माध्य से ही प्रदान करता है।कवि सौंदर्योपासक सहृदय प्राणी है। सौन्दर्य काव्य सृष्टि का परम आधार है। सौन्दर्य के अभाव में काव्य सृजन संदिग्ध ही नहीं असंभव है। कवि सर्वाधिक रूप में सौन्दर्य से अभिभूत एवं प्रभावित होता है। यह कहना अत्युक्ति न होगी कि सौन्दर्य ही काव्य का सर्वाधिक प्रभावी आधार है। सौन्दर्य के अभिमुख मानव तर्कातर्क, पुण्य-पाप, संगतासंगत, धर्माधर्म एवं उत्कर्षापकर्ष आदि के चिंतन भाव से मुक्त होकर सौन्दर्य-तरंगों में तरंगायित होकर विशेष आनंदानुभूति करता है। कवि अपने काव्य को दिव्य एवं मोहक रूप प्रदान करने हेतु समक्ष विद्यमान सुंदर रूप को स्व लेखनी से चित्रित करने के लिए आकुल-व्याकुल रहता है। यह सौन्दर्यांकन की आतुरता ही उसकी सौन्दर्य-प्रियता एवं उसके काव्य की श्रेष्ठता का सबल आधार प्रमाणित होती है।सौन्दर्य-प्रेमी कवि सांसारिक जीवन में बिखरी हुई सुंदरता को विविध रूप प्रदान करता है।इससे स्पष्ट हो जाता है कि काव्य एवं सौन्दर्य का अन्योन्याश्रय अभूतपूर्व संबंध है। सौन्दर्य काव्य की आत्मा है। सौन्दर्य विहीन काव्य प्राण हीन शव समान है।Published
2017-10-06
How to Cite
[1]
“योगेन्द्र दत्त शर्मा व हरिशंकर आदेश रचित सप्तशतियों में सौंदर्य बोध एवं रसानुभूति: -”, JASRAE, vol. 14, no. 1, pp. 237–239, Oct. 2017, Accessed: Jul. 23, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6982
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Articles
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[1]
“योगेन्द्र दत्त शर्मा व हरिशंकर आदेश रचित सप्तशतियों में सौंदर्य बोध एवं रसानुभूति: -”, JASRAE, vol. 14, no. 1, pp. 237–239, Oct. 2017, Accessed: Jul. 23, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/6982