बुद्ध की अनात्म दृष्टि

-

Authors

  • Dimple Rani
  • Dr. Nidhi Rastogi

Keywords:

बुद्ध, अनात्मवादी, प्रमुख सिद्धान्त, आग्रह, विशेष, आत्मा, परमार्थ, दार्शनिक, उपासना, बुद्ध का कहना, भवन, सत्ता, सोपान, मंगल, भिक्षुओ, धु्रव, शाश्वत्, चार्वाक, अन्तर, शरीर, मत, परमार्थ रूप, निषेध, पञ्चस्कन्ध, मानस प्रवृत्तियों

Abstract

भगवान बुद्ध अनात्मवादी थे। यह नैरात्म्यवाद ही उनका प्रमुख सिद्धान्त है। जिसकी पुष्टि के लिये उनका विशेष आग्रह था। आत्मा नाम की कोई नित्य वस्तु नहीं। आत्मा को परमार्थ रूप से जाने बिना ही अन्य दार्शनिक उसकी उपासना किया करते हैं। बुद्ध का कहना है कि यह बात तो वैसी ही है जैसे भवन की सत्ता को जाने बिना ही उस पर चढ़ने के लिये सोपान बनाना प्रारम्भ कर दे। जब आत्मा है ही नहीं तब उसके मंगल के लिये उद्योग क्या करना।1 भगवान बुद्ध आत्मतत्त्व की ओर बड़ी उपेक्षा दृष्टि से देखते थे। जैसे एक प्रौढ़ व्यक्ति खिलौनों को तुच्छ दृष्टि से देखता है, बुद्ध की दृष्टि भी आत्मा की ओर ऐसी ही थी। वे कहा करते थे कि हे भिक्षुओ। आत्मा को नित्य धु्रव शाश्वत् कहना बालधर्म है।2चार्वाक और बुद्ध के अनात्मवाद में थोड़ा अन्तर है। चार्वाक तो आत्मा को शरीर रूप ही मानते थे। शरीर ही आत्मा है शरीर से भिन्न आत्मा नहीं, ऐसा उनका मत है किन्तु बुद्ध आत्मा को नित्य धु्रव और शाश्वत रूप में नहीं मानते थे। उनका मत आत्मा का परमार्थ रूप से निषेध करना था। व्यवहार में आत्मा का अस्तित्व वे स्वीकार करते थे। किन्तु आत्मा को आत्मा न कह कर पञ्चस्कन्ध कहते थे। उनका कहना था कि आत्मा एक नहीं है बल्कि वह मानस प्रवृत्तियों का एक संघात मात्र है।

Downloads

Published

2018-01-01

How to Cite

[1]
“बुद्ध की अनात्म दृष्टि: -”, JASRAE, vol. 14, no. 2, pp. 659–664, Jan. 2018, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7281

How to Cite

[1]
“बुद्ध की अनात्म दृष्टि: -”, JASRAE, vol. 14, no. 2, pp. 659–664, Jan. 2018, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7281