मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक मान्यताएँ

मुंशी प्रेमचंद का साहित्य: सामाजिक चेतना के विश्लेषण

Authors

  • Bhawnesh Kumari Sudan
  • Dr. Sanju Jha

Keywords:

मुंशी प्रेमचंद, साहित्यिक मान्यताएँ, मानव स्वयं, समाज, सामाजिक चेतना

Abstract

मानव स्वयं सामाजिक प्राणी है। समाज हमारे-आपके जीवन की प्रतिध्वनि होता है। समाज शब्द अत्यन्त व्यापक और उसकी समस्याएं इससे कहीं अधिक व्यापक हैं। सारी चेतना जो व्यक्ति विशेष की न होकर एक ही काल में अनेक व्यक्तियों या समुदाय, समाज, राष्ट्र या सम्पूर्ण मानव जाति की सम्पत्ति ही सामाजिक चेतना है। किसी देश व काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्ति परिवर्तनशील जागृति से है। सामाजिक चेतना समाजगत्‌ होने से समाज के साथ और उसके अभिन्नांग राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति आदि के परस्पर संबंध का अवलोकन कर लेना ही है। संक्षेप में काल विशेष में समाज में सुधार के लिए किए गए प्रयास ही सामाजिक चेतना के अन्तर्गत आते हैं। यह चेतना प्रेमचन्द के साहित्य में स्वतः परिलक्षित होती है।

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Published

2018-01-01

How to Cite

[1]
“मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक मान्यताएँ: मुंशी प्रेमचंद का साहित्य: सामाजिक चेतना के विश्लेषण”, JASRAE, vol. 14, no. 2, pp. 763–766, Jan. 2018, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7298

How to Cite

[1]
“मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक मान्यताएँ: मुंशी प्रेमचंद का साहित्य: सामाजिक चेतना के विश्लेषण”, JASRAE, vol. 14, no. 2, pp. 763–766, Jan. 2018, Accessed: Mar. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7298