भारतीय दर्शन में कर्म-नियम द्वारा व्यक्तित्व निर्माण
व्यक्तित्व निर्माण और कर्म-नियम: भारतीय दर्शन में एक परिचय
Keywords:
प्रतीत्यसमुत्पाद, कर्म-नियम, व्यक्तित्व, मनुष्य, फलAbstract
प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम से कर्म-नियम का उदय होता है। प्रतीत्यसमुत्पाद के अनुसार कारण के आधार पर ही कार्य की उत्पत्ति होती है। कोई भी कार्य बिना कारण के नहीं होता है। प्रत्येक वस्तु प्रतीत्यसमुत्पन्न है। इस प्रकार कर्म-नियम प्रतीत्यसमुत्पाद के नियम में समाहित है। कर्म-नियम का सार यही है कि प्रत्येक कर्म का कोई न कोई फल अवश्य होता है। कर्म कारण है और फल उसका कार्य है। मनुष्य का वर्तमान जीवन उसके अतीत का परिणाम है औ र भविष्य वर्तमान जीवन का परिणाम होगा। कर्म-नियम के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी है। कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है। जब एक पीड़ित शिष्य बुद्ध के पास गया, जिसका सिर फटा हुआ था और उससे रक्त बह रहा था, तब महात्मा बुद्ध उससे कहते हैं, ‘‘हे अर्हत इसे इसी प्रकार सहन करो, क्योंकि तुम अपने उन कर्मों का फल भोग रहे हो जिसके लिए तुम्हें सदियों तक नरक का कष्ट सहन करना पड़ेगा।’’Published
2018-04-01
How to Cite
[1]
“भारतीय दर्शन में कर्म-नियम द्वारा व्यक्तित्व निर्माण: व्यक्तित्व निर्माण और कर्म-नियम: भारतीय दर्शन में एक परिचय”, JASRAE, vol. 15, no. 1, pp. 650–654, Apr. 2018, Accessed: Jun. 27, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7685
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Articles
How to Cite
[1]
“भारतीय दर्शन में कर्म-नियम द्वारा व्यक्तित्व निर्माण: व्यक्तित्व निर्माण और कर्म-नियम: भारतीय दर्शन में एक परिचय”, JASRAE, vol. 15, no. 1, pp. 650–654, Apr. 2018, Accessed: Jun. 27, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/7685