आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य, प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, अनुशासन व अध्यापक की भूमिका

-

Authors

  • Dr. Seema Devi

Keywords:

आदर्शवादी विचारधारा, मनुष्य, विचारों, भौतिक वस्तुओं, पूर्वी दार्शनिकों

Abstract

मानव सभ्यता के उदभव और विकास के समय से ही आदर्शवादी विचारधारा का किसी न किसी रूप में अस्तित्व रहा है। आधुनिक काल में जब मानव ने चिन्तन एवं मनन आरम्भ किया तब से आदर्शवादी विचारधारा निरन्तर पुष्पित एवं पल्लवित होती है। आदर्शवादी विचारधारा जीवन की निश्चितताओं से जुड़ी हुई है। इसका आशय है-जीवन के लिए निश्चित आदर्शों व मूल्यों का निर्धारण कर मनुष्य को उनके अनुकरण हेतु निर्देशित करना। यह विचारधारा भौतिक वस्तुओं की अपेक्षा विचारों पर अधिक बल देती है। आदर्शवादी दर्शन का प्रतिपादन सुकरात, प्लेटो, डेकॉर्टी, स्पनोसा, वर्कलकान्ट, फिटशे, रोलिंग, हीगल, ग्रीन जेन्टाइल आदि अनेक पाश्चात्य तथा वेदों व उपनिषदों के प्रणेता महर्षियों से लेकर अरविन्द घोष तक अनेक पूर्वी दार्शनिकों ने किया है।

Downloads

Published

2018-05-01

How to Cite

[1]
“आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य, प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, अनुशासन व अध्यापक की भूमिका: -”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 335–340, May 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8093

How to Cite

[1]
“आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य, प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, अनुशासन व अध्यापक की भूमिका: -”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 335–340, May 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8093