हिंदी साहित्य में आत्मकथाओं का विकास एवं उनकी विशेषताएं

आत्मकथाओं का विकास और विशेषताओं का अध्ययन: हिंदी साहित्य में

Authors

  • Mamatha Sharma

Keywords:

हिंदी साहित्य, आत्मकथा, विकास, विशेषताएं, अध्ययन

Abstract

साहित्य की अन्य विधाओं की भान्ति आत्मकथा एक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिसमें रचनाकार आत्मावलोकन करते हुए स्वयं अपने जीवन का मूल्यांकन करता है । अतः सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि आत्मकथा लेखक के भोगे हुए जीवन का स्वयं किया गया विवेचन एवं विश्लेषण है । इसमें उपन्यास की सी रोचकता एवं इतिहास की सी प्रमाणिकता होती है । इसमें लेखक अपने जीवन की सभी सच्चाइयों को निःसंकोच व्यक्त करता है। हिन्दी साहित्य में लिखी गई सर्वप्रथम आत्मकथा ‘अर्द्धकथानक’ है, जिसे जैन कवि श्री बनारसीदास ने सन् 1641 में लिखा था । इसके पश्चात् भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की अधूरी आत्मकथा ‘कुछ आपबीती-कुछ जगबीती’ का उल्लेख आता है । इस शोध में हम हिंदी साहित्य में उनकी आत्मकथाओं के विकास एवं उनकी विशेषताओं के बारे में विश्लेषात्मक अध्ययन करेंगे।

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Published

2018-05-01

How to Cite

[1]
“हिंदी साहित्य में आत्मकथाओं का विकास एवं उनकी विशेषताएं: आत्मकथाओं का विकास और विशेषताओं का अध्ययन: हिंदी साहित्य में”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 349–352, May 2018, Accessed: Jun. 27, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8096

How to Cite

[1]
“हिंदी साहित्य में आत्मकथाओं का विकास एवं उनकी विशेषताएं: आत्मकथाओं का विकास और विशेषताओं का अध्ययन: हिंदी साहित्य में”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 349–352, May 2018, Accessed: Jun. 27, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8096