योग दर्शन एवं भारतीय संस्कृति
Exploring the Connection between Yoga Philosophy and Indian Culture
Keywords:
योग, दर्शन, भारतीय संस्कृति, आत्मसाक्षात्कार, वेद, पुराण, पातंजल योगसूत्र, सांख्य, मोक्ष, स्वास्थ्यAbstract
भारतीय संस्कृति की ‘योग’ एक महत्वपूर्ण दार्शनिक विचारधारा है। इसका प्रमुख विषय आत्मसाक्षात्कार है। इसकी चर्चा वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण आदि सभी ग्रन्थों में प्राप्त होती है। अन्य दर्शनों की अपेक्षा इसकी एक अपनी विशेषता यह है कि यह केवल सैद्धान्तिक ही नहीं बल्कि व्यावहारिक भी है। स्वस्थ शरीर तथा सबल आत्मा दोनों ही इसके प्रतिपाद्य विषय हैं। इस दर्शन के प्रवर्तक महर्षि पतंजलि है। इनके दर्शन को पातंजल दर्शन कहते है। योग-दर्शन का पहला ग्रंथ ‘योगसूत्र’ या ‘पातंजल योगसूत्र’ है। यह ग्रंथ योग-दर्शन का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। मूलतः योग तत्त्वज्ञान का अभ्यास है। ”दुःख संयोगवियोगं योग संज्ञितम्“ गीता में दुःख के संयोग-वियोग को योग कहा है। ”योगः कर्मसु कौशलम्“कर्मों में कुशलता का नाम योग है। ”समत्वं योग उच्यते“फल की तृष्णा से रहित होकर किये जाने वाले कर्मों की सिद्धि और असिद्धि के समत्व बुद्धि रखना योग है। “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः“चित्तवृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं (पातंजल योग दर्शन, सूत्र 2)। महर्षि पंतजलि जी ने योग शब्द को समाधि के अर्थ में प्रयुक्त किया है। कैवल्य अथवा मोक्ष प्राप्त करने के लिए जिस मार्ग का अनुसरण और जिन साधनाओं को करना आवश्यक है उसका विस्तृत विवरण योग-दर्शन में ही मिलता है। योग-दर्शन का ‘सांख्य’ के साथ बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। सांख्य में यदि सैद्धान्तिक पक्ष है तो उसका व्यावहारिक पक्ष योग में मिलता है। एक तरह से इन दोनों को एक दूसरे का पूरक कहा जा सकता है। उपनिषद में सबसे पहली बार योग का उल्लेख आया है। योग की क्रियाओं से चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है मन स्थिर होता है, हृदय पत्रि होता है, आत्मा भौतिक जीवन से ऊँची उठ जाती है और ब्रह्म को समझने में सुगमता होती है।भारतीय संस्कृति की धार्मिक एवं आध्यात्मिक परम्परा में योग का बहुत महत्व है। भारतीय संस्कृति के धार्मिक एवं आध्यात्मिक गूढ़ तथ्यों का ज्ञान तभी सम्भव हो सकता है जब मनुष्य का चित्त एवं हृदय शुद्ध एवं शान्त हो। आत्म शुद्धि एवं आत्म ज्ञान के लिए योग ही सर्वोत्तम साधन है। योग-दर्शन में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आठ साधनों मान्यता दी गयी है। इन्हें जीवन में उतारने से शरीर, मन और इन्द्रियां संयम सीखाती हैं शारीरिक और आत्मिक तेज और बल से इसमें वृद्धि होती है। योगी अपनी साधना के बल पर त्रिकालदर्शी हो सकता है। योग साधना का वास्तविक लाभ मोक्ष की प्राप्ति है। वर्तमान में, मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग की उपयोगिता दिन-प्रति-दिन दुनिया के सम्मुख रखी जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाये जा रहे हैं। वर्तमान में योगाभ्यास की वही उपयोगिता और उपादेयता है, जो प्राचीनकाल में थी।Published
2018-05-01
How to Cite
[1]
“योग दर्शन एवं भारतीय संस्कृति: Exploring the Connection between Yoga Philosophy and Indian Culture”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 458–461, May 2018, Accessed: Sep. 13, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8116
Issue
Section
Articles
How to Cite
[1]
“योग दर्शन एवं भारतीय संस्कृति: Exploring the Connection between Yoga Philosophy and Indian Culture”, JASRAE, vol. 15, no. 3, pp. 458–461, May 2018, Accessed: Sep. 13, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8116