कबीर के भक्ति काव्य का आर्थिक स्वरूप
Exploring the Economic Nature of Kabir's Devotional Poetry
Keywords:
कबीर, भक्ति काव्य, आर्थिक स्वरूप, हिन्दी भक्ति साहित्य, संत साहित्यAbstract
हिन्दी भक्ति साहित्य में संत साहित्य का सुदृढ़ सूत्रपात कबीर के साहित्य से आरम्भ होता है, इसीलिए कबीर को संत साहित्य का प्रवर्तक माना जाता है। लेकिन कबीर के पहले भी संत मत का उदय हो चुका था। महाराष्ट्र के वारकरी सम्प्रदाय के ज्ञानेश्वर नामदेव और पंजाब के जयदेव का साहित्य इसका प्रमाण है। इनके अतिरिक्त लालदेव, संतवेणी, संत त्रिलोचन आदि कबीर पूर्व संतों की कतिपय रचनाएं प्राप्त होती हैं। ‘‘कबीर के पूर्व संतों में सबसे महत्वपूर्ण साहित्य संत नामदेव का है। नामदेव और कबीर की भक्ति में पर्याप्त साम्य भी है। लेकिन सबसे बड़ा अन्तर उनके साहित्य की अभिव्यक्ति शली है। इसीलिए नामदेव की अपेक्षा कबीर की वाणी तत्कालीन जन-मानस को झकझोरने में सफल रही है।’’ ‘‘कबीर का जन्म एक ऐसे युग में हुआ जबकि सारा राष्ट्र राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से पतनोन्मुख हो रहा था।’’Published
2018-06-02
How to Cite
[1]
“कबीर के भक्ति काव्य का आर्थिक स्वरूप: Exploring the Economic Nature of Kabir’s Devotional Poetry”, JASRAE, vol. 15, no. 4, pp. 743–746, Jun. 2018, Accessed: Dec. 23, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8304
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Section
Articles
How to Cite
[1]
“कबीर के भक्ति काव्य का आर्थिक स्वरूप: Exploring the Economic Nature of Kabir’s Devotional Poetry”, JASRAE, vol. 15, no. 4, pp. 743–746, Jun. 2018, Accessed: Dec. 23, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8304