श्री शंकराचार्यकृत सौन्दर्यलहरी तथा आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली की दार्शनिक पृष्ठभूमि का एक सर्वेक्षण
चैतन्य, जगत, और संसार के बीच आत्मा का दार्शनिक अध्ययन
Keywords:
श्री शंकराचार्यकृत सौन्दर्यलहरी, आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली, आत्मा, संसार, ब्रह्राAbstract
आत्मा का नित्यता के साथ साथ संसार की यथर्थता का अनुभव होना से सिद्धांत का हदय हुआ कि आत्मा कि बहा रूप से संसार को उत्पन्न करके उसमे समाहित हो जाता है। इस प्रकार यह संसार भी ब्रह्रा ही है ।सर्ब कलिवंद ब्रह्रा । क्योकि इस शरीर मे एक रूप मे ब्रह्रा ही प्रकाशित हो रहा। आत्मा का कही अभाव नही है । जीवात्मा से उपहित अथवा अवच्छिन्न है जीवात्मा बही होता है जहा जीवित शरीर होता है । किन्तु आत्मा तो मृत शरीर तथा मे विघामान है। आधयात्मिक दृष्टि से ब्रह्रा अथवा आत्मा की परम सत्ता सिद्ध है । बस्तु स्वभाव तथा आनत्य को देखते हुए जीवात्मा का अनेक अथवा बहुलता को स्वीकार करना ही तर्क संगत लगता है । बस्तुतः तीन सताए प्रतीत होता है ।१. वस्तु जगत (जड़) १. आत्मा (चैतन्य) तथा ३. ब्रह्रा (जिसके चिदंश तथा चिदानः के सयोग में शरीर की उत्पत्ति होती है । आगे चलकर ब्रह्रा का स्थान प्रकति विषयक चिन्तन में ले लिया अर्थात शरीर की उत्पत्ति होती है। आगे चलकर ब्रह्रा का स्थान प्रकति विषयक चिन्तन में ले लिया अर्थात प्रकृति ही जगत की उत्पत्ति करने वाली मानी गयी। प्रकति यघपि स्वयं जड़ है किन्तु किसी पर आश्रित न रहकर स्वतंत्र है। इसी चिन्तन के परिणाम स्वरूप सांख्य दर्सन के दैत्य बाद का उदय हुआ। (बी. एल. घाटे वेदांत 1960-इंट्रोडकशन प्रष्ट 9)Published
2018-07-01
How to Cite
[1]
“श्री शंकराचार्यकृत सौन्दर्यलहरी तथा आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली की दार्शनिक पृष्ठभूमि का एक सर्वेक्षण: चैतन्य, जगत, और संसार के बीच आत्मा का दार्शनिक अध्ययन”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 50–53, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8318
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Articles
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[1]
“श्री शंकराचार्यकृत सौन्दर्यलहरी तथा आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली की दार्शनिक पृष्ठभूमि का एक सर्वेक्षण: चैतन्य, जगत, और संसार के बीच आत्मा का दार्शनिक अध्ययन”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 50–53, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8318