हरिशंकर आदेश की सप्तशतियों में प्रकृति-चित्रण
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष: प्रकृति-चित्रण के माध्यम से मानव की अनुभूति
Keywords:
प्रकृति-चित्रण, मानव, प्रकृति, साहित्य, काव्यAbstract
प्रकृति अनादिकाल से मानव की सहचरी रही है वर्तमान में भी है एवं अनन्त काल तक मानव एवं प्रकृति का अन्योन्याभय सम्बन्ध अविराम गति से चलता रहेगा। साहित्य समाज का दर्पण है। काव्य साहित्य का संकुचित रूप है जो मानव की सर्जना है। काव्य का सामान्य अर्थ कविता होता है साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने काव्य को परिभाषित करते हुए लिखा है –वाक्य रसात्मकं काव्यम् ।12अर्थात् रसमय वाक्य को ही काव्य कहते हैं। जिसके अध्ययन या श्रवण से अथवा अध्यापन से आनन्दानुभूति होती है। काव्य से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। साधु काव्य कीर्ति एवं प्रीति दायक होता है।Published
2018-07-01
How to Cite
[1]
“हरिशंकर आदेश की सप्तशतियों में प्रकृति-चित्रण: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष: प्रकृति-चित्रण के माध्यम से मानव की अनुभूति”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 326–329, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8376
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Articles
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[1]
“हरिशंकर आदेश की सप्तशतियों में प्रकृति-चित्रण: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष: प्रकृति-चित्रण के माध्यम से मानव की अनुभूति”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 326–329, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8376