महात्मा गाँधी का समाज–दर्शन
Exploring the Social Philosophy of Mahatma Gandhi
Keywords:
महात्मा गाँधी, समाज–दर्शन, दर्शन, सत्य, वर्ण-व्यवस्था, सर्वोदय, समाज-दर्शन, उदय, योगदानAbstract
बहुत से लोग गाँधी को दार्शनिक नहीं मानते हैं और न यह सोच ही सकते हैं कि उनका भी कोई जीवन-दर्शन था। वस्तुतः दर्शन का अर्थ ही सत्य को देखना है। ‘‘दृश्यते अनेन इति दर्शनम्’’ अर्थात् जिसके माध्यम से सत्य को सही प्रकार से देखा जाय वही दर्शन है। जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बंधित ऐसा कोई प्रश्न नहीं जिस पर गाँधी ने सूक्ष्म से सूक्ष्म दृष्टि न डाली हो।गाँधी का सामाजिक दर्शन के क्षेत्र में वर्ण-व्यवस्था का समर्थन एक मौलिक योगदान है। गाँधी ने कहा है कि “कार्य के आधार पर, चाहे वह ब्राह्मण ही क्यों न हो श्रेष्ठता का दावा करना अनुचित और अन्यायपूर्ण है। वर्णाश्रम व्यवस्था का अर्थ है-शक्ति का रक्षण और उसका व्यवस्थित उपयोग।” वस्तुतः सर्वोदय अर्थात् सबका उदय ये संकल्पना ही गाँधी के समाज-दर्शन का सार तत्व है।Published
2018-07-01
How to Cite
[1]
“महात्मा गाँधी का समाज–दर्शन: Exploring the Social Philosophy of Mahatma Gandhi”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 628–631, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8431
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Articles
How to Cite
[1]
“महात्मा गाँधी का समाज–दर्शन: Exploring the Social Philosophy of Mahatma Gandhi”, JASRAE, vol. 15, no. 5, pp. 628–631, Jul. 2018, Accessed: Sep. 19, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8431