ज्ञानप्रदाता के रूप में शिक्षक की जटिल भूमिका

बालकों में आदतों, संस्कारों और मानवीय मूल्यों का समावेश करने का प्रयास

Authors

  • Rajiv Sharma

Keywords:

शिक्षक, विद्यार्थी, संस्कृति, सदाचार, नैतिक मूल्य, आदत, संस्कार, मानवीय मूल्य, शैक्षिक विचारक, विद्यार्थी का व्यक्तिव निर्माण

Abstract

आज के शिक्षक व विद्यार्थी भारतीय संस्कृति, सदाचार एवं नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने के बजाए भौतिकता के आकर्शण के पीछे भागते दिखाई देते हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रारम्भ से बालकों में अच्छी आदतों, संस्कारों एवं मानवीय मूल्यों की भावनाओं को समावेषित करने का प्रयास किया जाए। शायद इसी आवश्यकता को महसूस करते हुए महान शैक्षिक विचारक जे. कृष्णमूर्ति एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला रखने को कृत संकल्प हुए जो विद्यार्थी को वास्तविकता का बोध कराते हुए प्रेम, करूणा, प्रज्ञा, संवेदनशीलता व अंतः ज्ञान आदि गुणों से युक्त बनाए। मानीय मूल्यों से समन्वित शिक्षा की परिकल्पना के द्वारा वह ‘बालकों का व्यक्त्तिव निर्माण’ करना चाहते थे।एक अध्यापक को चाहिये कि वह बालक को स्वतन्त्रता के सही अर्थों की पहचान कराये आज स्वतन्त्रता के प्रति जो भ्रम है वह बहुत ही गलत है। बालकों से यह संस्कार डाले जाये कि स्वतन्त्रता है पर वहीं तक जहां तक दूसरे की स्वतन्त्रता का हनन नहीं हो। अध्यापक को समझाना होगा कि स्वतन्त्रता स्वच्छन्दता नहीं है जिस प्रकार से अनुशासन बन्धन नहीं है। यह बताना इसलिये भी जरूरी है कि गूढ़ अर्थों में स्वतन्त्रता ही अनुशासन में निहित है।

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Published

2018-08-05

How to Cite

[1]
“ज्ञानप्रदाता के रूप में शिक्षक की जटिल भूमिका: बालकों में आदतों, संस्कारों और मानवीय मूल्यों का समावेश करने का प्रयास”, JASRAE, vol. 15, no. 6, pp. 295–301, Aug. 2018, Accessed: Aug. 18, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8522

How to Cite

[1]
“ज्ञानप्रदाता के रूप में शिक्षक की जटिल भूमिका: बालकों में आदतों, संस्कारों और मानवीय मूल्यों का समावेश करने का प्रयास”, JASRAE, vol. 15, no. 6, pp. 295–301, Aug. 2018, Accessed: Aug. 18, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8522