भास के नाटकों का सामाजिक अध्ययन

भाषा के माध्यम से समाज में चरित्र निर्माण का समाधान

Authors

  • Rajni Mudgal
  • Dr. Sukdev Bajpaye

Keywords:

सामाजिक अध्ययन, मानव सभ्यता, साहित्य, विचारों, व्यवहार

Abstract

मानव सभ्यता के विकास में साहित्य का अमूल्य योगदान है। मानव ने समाज से ही विचारों का आदान-प्रदान सीखा है। समाज के लोगों के व्यवहारों को कवियों ने शब्दों में ढालकर उसे साहित्य का जामा पहनाया है। साहित्य के माध्यम से ही समाज में क्रान्ति का आगमन हुआ है। मनुष्यों की विचार धारा में परिवर्तन और उसका संस्कारी करण करने का काम साहित्य ही करता आया है। इतिहास इस बात का गवाह है कि विश्व की सभ्यताओं के विकास में साहित्य की अमूल्य भूमिका है। कोई भी रचनाकार जब अपनी कलम को लिखने के लिए उठाता है तो सबसे पहले उसके सामने समाज की छवि ही उभर कर आती है। रचनाकार समाज में व्याप्त विसंगतियों के बारे में लिखता है। उसके लिखने का उद्देश्य समाज को मार्ग दिखाना होता है। वह अपनी रचनाओं से समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डाल कर समाज के लोगों को जागरुक करता है। समाज के लोगों ककी नैतिकता का पतन होने, अराजकता की स्थिति उत्पन्न होने, कुरीतियों के बढ़ने, शोषण, अत्याचार के बढ़ने आदि परिस्थतियों से पीड़ित समाज को मुक्त करने के लिए एक कलमकार कलम चलाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हव समाज के बिना जीवित नहीं रह सकता। एक व्यक्ति को पल-पल समाज का आश्रय लेना पड़ता है। सुख-दुःख आदि द्वन्द्वात्मक परिस्थितियों के बीच वह शान्ति का अनुभव करता है। कवि भी समाज का ही एक अंग होता है। उसकी लेखनी समाज की ही लेखनी होती है। उसकी कल्पनात्मक रचनाओं में भी समाज ही छाया रहता है। वह समाज में घटने वाली हर घटना को साहित्य में पिरोता है। वस्तुतः समाज और कवि तथा साहित्य और कवि के बाच गहरा सम्बन्ध होता है।

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Published

2018-08-05

How to Cite

[1]
“भास के नाटकों का सामाजिक अध्ययन: भाषा के माध्यम से समाज में चरित्र निर्माण का समाधान”, JASRAE, vol. 15, no. 6, pp. 386–392, Aug. 2018, Accessed: Aug. 18, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8538

How to Cite

[1]
“भास के नाटकों का सामाजिक अध्ययन: भाषा के माध्यम से समाज में चरित्र निर्माण का समाधान”, JASRAE, vol. 15, no. 6, pp. 386–392, Aug. 2018, Accessed: Aug. 18, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8538