समाजिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक रूप से समाजयोजन का अध्ययन
अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर ही लें और समायोजित रहें
Keywords:
समाजिक, शारीरिक, संवेगात्मक, समायोजन, आवश्यकताऐंAbstract
प्रत्येक व्यक्ति की कुछ न कुछ इच्छाऐं, आवश्यकताऐं तथा आकांक्षाऐं होती है। वह इन्हीं को प्राप्त अथवा पूर्ण करने का निरन्तर प्रयास करता है। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह सदैव ही इन आवश्यकताओं तथा इच्छाओं को पूरा कर ही लें। कुछ व्यक्ति अपनी इन इच्छाओं व आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित कर लेते है और इस प्रकार वे अपने आप को समायोजित कर लेते है। लेकिन जो व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाते उनमें भग्नाशा, तनाव, द्वन्द, चिन्ता, शंका आदि मनोवेग उत्पन्न हो जाते है। अर्थात् समायोजन का सामान्य अर्थ यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता एवं उससे सम्बन्धित परिस्थिति के साथ सामन्जस्य स्थापित कर लेता है तो वह समायोजित है। यह सामंजस्य समाज द्वारा मान्य मान्यताओं के अनुरूप होता है। इस शोधपत्र में हम समाजिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक रूप से समाजयोजन का अध्धयन करेंगे।Published
2018-09-01
How to Cite
[1]
“समाजिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक रूप से समाजयोजन का अध्ययन: अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर ही लें और समायोजित रहें”, JASRAE, vol. 15, no. 7, pp. 325–328, Sep. 2018, Accessed: Sep. 13, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8698
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Articles
How to Cite
[1]
“समाजिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक रूप से समाजयोजन का अध्ययन: अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर ही लें और समायोजित रहें”, JASRAE, vol. 15, no. 7, pp. 325–328, Sep. 2018, Accessed: Sep. 13, 2024. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8698