भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान: एक विस्तृत अध्ययन

Authors

  • Anil Kumar

Keywords:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, महात्मा गांधी, योगदान, खिलाफत और असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन

Abstract

भारतीय राजनीतिक मंच पर 1919 से 1948 तक महात्मा गांधी जी इस प्रकार छाए रहे कि इस युग को भारतीय इतिहास का गांधी युग कहा जाता है। 1914 में गांधी जी भारत लौट आए और अपनी सेवाओं की मान्यता के फलस्वरूप अब महात्मा कहलाने लगे। आने वाले कुछ समय तक भारतीय स्थिति का अध्ययन करते रहे । 1917 में उन्होंने बिहार के चंपारण जिले में नील के बगीचों के यूरोपीय मालिकों के विरुद्ध भारतीय मजदूरों को एकत्रित किया। 1919 की जलियांवाला बाग में हुई दुर्घटना और रोलट ऐक्ट के पारित होने पर गांधी जी बहुत खिन्न हुए और उन्होंने भारतीय राजनीति में सक्रिय भाग लेना आरंभ कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों को 'शैतानी लोग 'कहा और अपनी असहयोग की नीति अपनाई।खिलाफत और असहयोग आंदोलन (1919-22) - लखनऊ समझौते के परिणाम स्वरुप हिंदू- मुस्लिम एकता को बल मिला। तुर्की साम्राज्य के प्रति ब्रिटेन के व्यवहार के कारण अली बंधुओं, मौलाना आजाद ,हकीम अजमल खां और हसरत मोहानी के नेतृत्व में खिलाफत कमेटी बनी और देशव्यापी आंदोलन शुरू किया गया।महात्मा गांधी जी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदू- मुस्लिम एकता का अवसर समझा और इसका समर्थन किया रोल्ट ऐक्ट, जलियांवाला बाग के भीषण गोलीकांड और खिलाफत के कारण गांधी जी ने 1920 के कोलकाता अधिवेशन में सरकार से असहयोग का प्रस्ताव पारित करवाया। इसमें निर्णय लिया कि सभी सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार किया जाएगा। 1921 और 1922 में भारतीय जनता ने एक अभूतपूर्व आंदोलन किया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई, छात्रों ने कॉलेजों को छोड़ कर विरोध प्रदर्शन किया परंतु 5 फरवरी 1922 को यूपी के चोरी चोरा नामक स्थान पर क्रुद्ध भीड़ हिंसक हो गई और 22 पुलिसकर्मी मार दिए गए ।इस घटना की खबर मिलते ही गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया।सविनय अवज्ञा आंदोलन (1932-34)- गांधी जी ने नमक कानून के विरोध में 22 मार्च 1930 को अपने 78 अनुयायियों के साथ यात्रा शुरू कर दो सौ मील की दूरी तय करके 24 दिन बाद 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़ा और सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। गांधीजी को 5 मई को गिरफ्तार कर लिया गया जिससे आंदोलन और भी भड़क गया सर तेज बहादुर सप्रू के प्रयत्नों से गांधी इरविन समझौता हुआ जिसमें कुछ समय के लिए आंदोलन स्थगित करना और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए गांधीजी से सहमत हो गई। परंतु सांप्रदायिकता के प्रश्न पर गांधीजी निराश होकर दूसरे गोलमेज सम्मेलन से वापस लौटे और पुन सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु कर दिया। 1933 में गांधी जी ने अपने आंदोलन को असफल स्वीकार कर लिया और कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और वे हरिजन सेवा में लग गए।भारत छोड़ो आंदोलन (1942)- क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस कमेटी की बैठक में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। परंतु अगले ही दिन गांधी जी समेत तमाम आंदोलन के मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इन गिरफ्तारीओ के बाद ऐक स्वतः स्फूर्त आंदोलन शुरू हो गया।आक्रोशित लोगों ने रेलवे स्टेशन, रेल पटरी, थानों पोस्ट ऑफिस और बैंकों आदि को निशाना बनाया।यह आंदोलन भारत के स्वतंत्र होने तक चलता रहा। गांधीजी के इन जन आंदोलनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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Published

2019-01-01

How to Cite

[1]
“भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान: एक विस्तृत अध्ययन”, JASRAE, vol. 16, no. 1, pp. 306–309, Jan. 2019, Accessed: Jun. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/9495

How to Cite

[1]
“भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान: एक विस्तृत अध्ययन”, JASRAE, vol. 16, no. 1, pp. 306–309, Jan. 2019, Accessed: Jun. 16, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/9495