हिन्दी कविता में प्रगतिवादी स्वर

The Progressive Tone in Hindi Poetry

Authors

  • Parveen Devi

Keywords:

हिन्दी कविता, प्रगतिवादी स्वर, छायावाद, व्यक्तिवाद, भारतीय बुद्धिजीवी, सामाजवाद, पूंजीवादी

Abstract

साहित्य में किसी भी काव्यधारा का न तो एकाएक प्रवर्तन होता है और न ही किसी नई काव्यधारा में केवल नए कवियों का योगदान होता है। हिन्दी साहित्य में यह देखा गया है कि जब किसी नई काव्यधारा का प्रवर्तन होता है तब उससे पूर्ववर्ती काव्यधारा से जुड़े कवि भी उसमें अपना योगदान देने लगते हैं। ऐसी दशा में इन कवियों की गणना दोनों काव्यधाराओं में होती है। हिन्दी कविता में छायावाद के स्तम्भों में शामिल ‘निराला’ व सुमित्रानन्दन पंत की कविताओं से प्रगतिवादी स्वर की शुरुआत होती है। प्रगतिवादी काव्यधारा के विकास में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ सहायक होती हैं, साथ ही छायावाद की जीवनशून्य होती हुई व्यक्तिवाद, छायावादी काव्यधारा की प्रतिक्रिया भी उसमें शामिल थी। भारतीय बुद्धिजीवी एक ओर अपने समाज में उत्पन्न अनेक सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक विसंगतियों और संकटों को देख रहा था। दूसरी ओर वह रूस के उस समाज को देख रहा था जो इन विसंगतियों और संकटों से गुजरकर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित कर रहा था जिसमें सामान्य जनजीवन को महत्ता प्राप्त हो रही थी। वैसे तो हिन्दी काव्यधारा में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना (सन् 1936) से लेकर तारसप्तक (1943) तक की कविता को प्रगतिवादी कविता माना जाता है, परन्तु इस कालखण्ड से पहले व बाद के कवियों की कविताओं में भी प्रगतिवादी स्वर देखने को मिलता है। प्रगतिवादी कविता जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह अर्थ को ही समस्त विषमताओं का आधार मानता है। और उसके सामाजिक विभाजन पर ही बल देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में शोषक व शोषित के बीच आर्थिक खाई लगातार बढ़ती जाती है। इस प्रकार प्रगतिवादी कवि पूंजीवादी परम्परा को खत्म कर समाजवाद की स्थापना करना चाहता है।

Downloads

Published

2019-01-01

How to Cite

[1]
“हिन्दी कविता में प्रगतिवादी स्वर: The Progressive Tone in Hindi Poetry”, JASRAE, vol. 16, no. 1, pp. 375–378, Jan. 2019, Accessed: Jun. 15, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/9510

How to Cite

[1]
“हिन्दी कविता में प्रगतिवादी स्वर: The Progressive Tone in Hindi Poetry”, JASRAE, vol. 16, no. 1, pp. 375–378, Jan. 2019, Accessed: Jun. 15, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/9510